॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - चौदहवाँ
अध्याय..(पोस्ट०२)
दिति
का गर्भधारण
दितिर्दाक्षायणी
क्षत्तः मारीचं कश्यपं पतिम् ।
अपत्यकामा
चकमे सन्ध्यायां हृच्छयार्दिता ॥ ७ ॥
इष्ट्वाग्निजिह्वं
पयसा पुरुषं यजुषां पतिम् ।
निम्लोचत्यर्क
आसीनं अग्न्यगारे समाहितम् ॥ ८ ॥
दितिरुवाच
।
एष
मां त्वत्कृते विद्वन् काम आत्तशरासनः ।
दुनोति
दीनां विक्रम्य रम्भामिव मतङ्गजः ॥ ९ ॥
तद्भवान्
दह्यमानायां सपत्नीनां समृद्धिभिः ।
प्रजावतीनां
भद्रं ते मय्यायुङ्क्तामनुग्रहम् ॥ १० ॥
भर्तर्याप्तोरुमानानां
लोकानाविशते यशः ।
पतिर्भवद्विधो
यासां प्रजया ननु जायते ॥ ११ ॥
पुरा
पिता नो भगवान् दक्षो दुहितृवत्सलः ।
कं
वृणीत वरं वत्सा इत्यपृच्छत नः पृथक् ॥ १२ ॥
स
विदित्वात्मजानां नो भावं सन्तानभावनः ।
त्रयोदशाददात्तासां
यास्ते शीलमनुव्रताः ॥ १३ ॥
अथ
मे कुरु कल्याण कामं कञ्जविलोचन ।
आर्तोपसर्पणं
भूमन् अमोघं हि महीयसि ॥ १४ ॥
(श्रीमैत्रेयजी
कहते हैं) विदुरजी ! एक बार दक्षकी पुत्री दिति ने पुत्रप्राप्ति की इच्छासे कामातुर
होकर सायंकाल के समय ही अपने पति मरीचिनन्दन कश्यपजीसे प्रार्थना की ॥ ७ ॥ उस समय
कश्यपजी खीर की आहुतियों द्वारा अग्निजिह्व भगवान् यज्ञपति की आराधना कर
सूर्यास्त का समय जान अग्निशाला में ध्यानस्थ होकर बैठे थे ॥ ८ ॥
दितिने
कहा—विद्वन् ! मतवाला हाथी जैसे केलेके वृक्षको मसल डालता है, उसी प्रकार यह प्रसिद्ध धनुर्धर कामदेव मुझ अबला पर जोर जताकर आप के लिये
मुझे बेचैन कर रहा है ॥ ९ ॥ अपनी पुत्रवती सौतोंकी सुख-समृद्धि को देखकर मैं ईर्ष्या
की आगसे जली जाती हूँ। अत: आप मुझपर कृपा कीजिये, आपका
कल्याण हो ॥ १० ॥ जिनके गर्भसे आप-जैसा पति पुत्ररूप से उत्पन्न होता है, वे ही स्त्रियाँ अपने पतियों से सम्मानिता समझी जाती हैं। उनका सुयश
संसारमें सर्वत्र फैल जाता है ॥ ११ ॥ हमारे पिता प्रजापति दक्षका अपनी पुत्रियोंपर
बड़ा स्नेह था। एक बार उन्होंने हम सबको अलग-अलग बुलाकर पूछा कि ‘तुम किसे अपना पति बनाना चाहती हो ?’ ॥ १२ ॥ वे अपनी
सन्तानकी सब प्रकारकी चिन्ता रखते थे। अत: हमारा भाव जानकर उन्होंने उनमेंसे हम
तेरह पुत्रियोंको, जो आपके गुण-स्वभावके अनुरूप थीं, आपके साथ ब्याह दिया ॥ १३ ॥ अत: मङ्गलमूर्ते ! कमलनयन ! आप मेरी इच्छा पूर्ण
कीजिये; क्योंकि हे महत्तम ! आप-जैसे महापुरुषोंके पास
दीनजनोंका आना निष्फल नहीं होता ॥ १४ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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