||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.०४)
सप्ताहयज्ञ की विधि
विरक्तो
वैष्णवो विप्रो वेदशास्त्रविशुद्धिकृत् ।
दृष्टान्तकुशलो
धीरो वक्ता कार्योऽति निःस्पृह ॥ २० ॥
अनेकधर्मनिभ्रान्ताः
स्त्रैणाः पाखण्डवादिनः ।
शुकशास्त्रकथोच्चारे
त्याज्यास्ते यदि पण्डिताः ॥ २१ ॥
वक्तुः
पार्श्वे सहायार्थं अन्यः स्थाप्यस्तथाविधः ।
पण्डितः
संशयच्छेत्ता लोकबोधनतत्परः ॥ २२ ॥
वक्त्रा
क्षौरं प्रकर्तव्यं दिनाद् अर्वाक् व्रताप्तये ।
अरुणोदयेऽसौ
निर्वर्त्य शौचं स्नानं समाचरेत् ॥ २३ ॥
नित्यं
संक्षेपतः कृत्वा संध्याद्यं स्वं प्रयत्नतः ।
कथाविघ्नविघाताय
गणनाथं प्रपूजयेत् ॥ २४ ॥
जो वेद-शास्त्रकी
स्पष्ट व्याख्या करनेमें समर्थ हो, तरह-तरहके
दृष्टान्त दे सकता हो तथा विवेकी और अत्यन्त नि:स्पृह हो, ऐसे
विरक्त और विष्णुभक्त ब्राह्मणको वक्ता बनाना चाहिये ॥ २० ॥
श्रीमद्भागवतके
प्रवचन में ऐसे लोगोंको नियुक्त नहीं करना चाहिये जो पण्डित होनेपर भी अनेक
धर्मोंके चक्करमें पड़े हुए, स्त्री- लम्पट
एवं पाखण्डके प्रचारक हों ॥ २१ ॥ वक्ताके पास ही उसकी सहायताके लिये एक वैसा ही
विद्वान् और स्थापित करना चाहिये। वह भी सब प्रकार के संशयों की निवृत्ति करने में
समर्थ और लोगों को समझाने में कुशल हो ॥ २२ ॥ कथा-प्रारम्भ के दिनसे एक दिन पूर्व
व्रत ग्रहण करनेके लिये वक्ताको क्षौर करा लेना चाहिये। तथा अरुणोदयके समय शौचसे
निवृत्त होकर अच्छी तरह स्नान करे ॥ २३ ॥ और संध्यादि अपने नित्यकर्मोंको संक्षेपसे
समाप्त करके कथाके विघ्रोंकी निवृत्तिके लिये गणेशजीका पूजन करे ॥ २४ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित
श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से
No comments:
Post a Comment