Thursday, December 7, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य पहला अध्याय (पोस्ट.०७)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पहला अध्याय (पोस्ट.०७)

देवर्षि नारदकी भक्तिसे भेंट

सत्यं नास्ति तपः शौचं दया दानं न विद्यते ।
उदरंभरिणो जीवा वराकाः कूटभाषिणः ॥ ३१ ॥
मन्दाः सुमन्दमतयो मन्दभाग्या हि उपद्रुताः ।
पाखण्डनिरताः संतो विरक्ताः सपरिग्रहाः ॥ ३२ ॥
तरुणीप्रभुता गेहे श्यालको बुद्धिदायकः ।
कन्याविक्रयिणो लोभाद् दंपतीनां च कल्कनम् ॥ ३३ ॥
आश्रमा यवनै रुद्धाः तीर्थानि सरितस्तथा ।
देवतायतनान्यत्र दुष्टैः नष्टानि भूरिशः ॥ ३४ ॥
न योगी नैव सिद्धो वा न ज्ञानी सत्क्रियो नरः ।
कलिदावानलेनाद्य साधनं भस्मतां गतम् ॥ ३५ ॥
अट्टशूला जनपदाः शिवशूला द्विजातयः ।
कामिन्यः केशशूलिन्यः संभवन्ति कलौ इह ॥ ३६ ॥

(नारद जी कहते हैं कि) अब यहाँ सत्य, तप, शौच (बाहर-भीतरकी पवित्रता), दया, दान आदि कुछ भी नहीं है। बेचारे जीव केवल अपना पेट पालनेमें लगे हुए हैं; वे असत्यभाषी, आलसी, मन्दबुद्धि, भाग्यहीन, उपद्रवग्रस्त हो गये हैं। जो साधु-संत कहे जाते हैं, वे पूरे पाखण्डी हो गये हैं; देखनेमें तो वे विरक्त हैं, किन्तु स्त्री-धन आदि सभीका परिग्रह करते हैं। घरोंमें स्त्रियोंका राज्य है, साले सलाहकार बने हुए हैं, लोभसे लोग कन्या विक्रय करते हैं और स्त्री-पुरुषोंमें कलह मचा रहता है ॥ ३१३३ ॥ महात्माओंके आश्रम, तीर्थ और नदियोंपर यवनों (विधॢमयोंका) अधिकार हो गया है; उन दुष्टोंने बहुत-से देवालय भी नष्ट कर दिये हैं ॥ ३४ ॥ इस समय यहाँ न कोई योगी है न सिद्ध है; न ज्ञानी है और न सत्कर्म करने- वाला ही है। सारे साधन इस समय कलिरूप दावानलसे जलकर भस्म हो गये हैं ॥ ३५ ॥ इस कलियुगमें सभी देशवासी बाजारोंमें अन्न बेचने लगे हैं, ब्राह्मणलोग पैसा लेकर वेद पढ़ाते हैं और स्त्रियाँ वेश्यावृत्तिसे निर्वाह करने लगी हैं ॥ ३६ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से 


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