॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - बारहवाँ
अध्याय..(पोस्ट०२)
सृष्टिका
विस्तार
सोऽवध्यातः
सुतैरेवं प्रत्याख्यातानुशासनैः ।
क्रोधं
दुर्विषहं जातं नियन्तुमुपचक्रमे ॥ ६ ॥
धिया
निगृह्यमाणोऽपि भ्रुवोर्मध्यात्प्रजापतेः ।
सद्योऽजायत
तन्मन्युः कुमारो नीललोहितः ॥ ७ ॥
स
वै रुरोद देवानां पूर्वजो भगवान्भवः ।
नामानि
कुरु मे धातः स्थानानि च जगद्गुरो ॥ ८ ॥
इति
तस्य वचः पाद्मो भगवान् परिपालयन् ।
अभ्यधाद्
भद्रया वाचा मा रोदीस्तत्करोमि ते ॥ ९ ॥
यदरोदीः
सुरश्रेष्ठ सोद्वेग इव बालकः ।
ततस्त्वां
अभिधास्यन्ति नाम्ना रुद्र इति प्रजाः ॥ १० ॥
हृदिन्द्रियाण्यसुर्व्योम
वायुरग्निर्जलं मही ।
सूर्यश्चन्द्रस्तपश्चैव
स्थानान्यग्रे कृतानि मे ॥ ११ ॥
मन्युर्मनुर्महिनसो
महान् शिव ऋतध्वजः ।
उग्ररेता
भवः कालो वामदेवो धृतव्रतः ॥ १२ ॥
धीर्वृत्तिरसलोमा
च नियुत्सर्पिरिलाम्बिका ।
इरावती
स्वधा दीक्षा रुद्राण्यो रुद्र ते स्त्रियः ॥ १३ ॥
गृहाणैतानि
नामानि स्थानानि च सयोषणः ।
एभिः
सृज प्रजा बह्वीः प्रजानामसि यत्पतिः ॥ १४ ॥
इत्यादिष्टः
स्वगुरुणा भगवान् नीललोहितः ।
सत्त्वाकृतिस्वभावेन
ससर्जात्मसमाः प्रजाः ॥ १५ ॥
जब
ब्रह्माजी ने देखा कि मेरी आज्ञा न मानकर ये मेरे पुत्र (सनक,सनन्दन,सनातन और सनत्कुमार) मेरा तिरस्कार कर रहे हैं, तब उन्हें
असह्य क्रोध हुआ। उन्होंने उसे रोकने का प्रयत्न किया ॥ ६ ॥ किन्तु बुद्धिद्वारा
उनके बहुत रोकने पर भी वह क्रोध तत्काल प्रजापति की भौंहों के बीच में से एक
नील-लोहित (नीले और लाल रंग के) बालक के रूप में प्रकट हो गया ॥ ७ ॥ वे देवताओं के
पूर्वज भगवान् भव (रुद्र) रो-रोकर कहने लगे—‘जगत्पिता !
विधाता ! मेरे नाम और रहने के स्थान बतलाइये’ ॥ ८ ॥ तब
कमलयोनि भगवान् ब्रह्मा ने उस बालक की प्रार्थना पूर्ण करने के लिये मधुर वाणी में
कहा, ‘रोओ मत’ मैं अभी तुम्हारी इच्छा
पूरी करता हूँ ॥ ९ ॥ देवश्रेष्ठ ! तुम जन्म लेते ही बालक के समान फूट-फूटकर रोने
लगे, इसलिये प्रजा तुम्हें ‘रुद्र’
नामसे पुकारेगी ॥ १० ॥ तुम्हारे रहनेके लिये मैंने पहलेसे ही हृदय,
इन्द्रिय, प्राण, आकाश,
वायु, अग्रि, जल,
पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा
और तप—ये स्थान रच दिये हैं ॥ ११ ॥ तुम्हारे नाम मन्यु,
मनु, महिनस, महान्,
शिव, ऋतध्वज, उग्ररेता,
भव, काल, वामदेव और
धृतव्रत होंगे ॥ १२ ॥ तथा धी, वृत्ति, उशना,
उमा, नियुत्, सर्पि,
इला, अम्बिका, इरावती,
सुधा और दीक्षा—ये ग्यारह रुद्राणियाँ
तुम्हारी पत्नियाँ होंगी ॥ १३ ॥ तुम उपर्युक्त नाम, स्थान और
स्त्रियों को स्वीकार करो और इनके द्वारा बहुत-सी प्रजा उत्पन्न करो; क्योंकि तुम प्रजापति हो ॥ १४ ॥
लोकपिता
ब्रह्माजीसे ऐसी आज्ञा पाकर भगवान् नीललोहित बल, आकार और
स्वभावमें अपने-ही-जैसी प्रजा उत्पन्न करने लगे ॥ १५ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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