Sunday, May 20, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - दूसरा अध्याय..(पोस्ट०७)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - दूसरा अध्याय..(पोस्ट०७)

उद्धवजी द्वारा भगवान्‌ की बाललीलाओं का वर्णन

वसुदेवस्य देवक्यां जातो भोजेन्द्रबन्धने ।
चिकीर्षुर्भगवानस्याः शमजेनाभियाचितः ॥ २५ ॥
ततो नन्दव्रजमितः पित्रा कंसाद् विबिभ्यता ।
एकादश समास्तत्र गूढार्चिः सबलोऽवसत् ॥ २६ ॥
परीतो वत्सपैर्वत्सान् चारयन् व्यहरद्विभुः ।
यमुनोपवने कूजद् द्विजसङ्कुलिताङ्‌घ्रिपे ॥ २७ ॥

ब्रह्माजीकी प्रार्थनासे पृथ्वीका भार उतारकर उसे सुखी करनेके लिये कंसके कारागार में वसुदेव-देवकी के यहाँ भगवान्‌ ने अवतार लिया था ॥ २५ ॥ उस समय कंस के डर से पिता वसुदेवजी ने उन्हें नन्दबाबा के व्रज में पहुँचा दिया था। वहाँ वे बलरामजी के साथ ग्यारह वर्ष तक इस प्रकार छिपकर रहे कि उनका प्रभाव व्रजके बाहर किसीपर प्रकट नहीं हुआ ॥ २६ ॥ यमुनाके उपवनमें, जिसके हरे-भरे वृक्षोंपर कलरव करते हुए पक्षियोंके झुंड-के-झुंड रहते हैं, भगवान्‌ श्रीकृष्णने बछड़ोंको चराते हुए ग्वाल-बालोंकी मण्डलीके साथ विहार किया था ॥ २७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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