Sunday, May 20, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - दूसरा अध्याय..(पोस्ट०८)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - दूसरा अध्याय..(पोस्ट०८)

उद्धवजी द्वारा भगवान्‌ की बाललीलाओं का वर्णन

कौमारीं दर्शयन् चेष्टां प्रेक्षणीयां व्रजौकसाम् ।
रुदन्निव हसन्मुग्ध बालसिंहावलोकनः ॥ २८ ॥
स एव गोधनं लक्ष्म्या निकेतं सितगोवृषम् ।
चारयन् ननुगान् गोपान् रणद् वेणुररीरमत् ॥ २९ ॥
प्रयुक्तान् भोजराजेन मायिनः कामरूपिणः ।
लीलया व्यनुदत्तान् तान् बालः क्रीडनकानिव ॥ ३० ॥
विपन्नान् विषपानेन निगृह्य भुजगाधिपम् ।
उत्थाप्यापाययद् गावः तत्तोयं प्रकृतिस्थितम् ॥ ३१ ॥

वे व्रजवासियोंकी दृष्टि आकृष्ट करनेके लिये अनेकों बाल-लीला उन्हें दिखाते थे। कभी रोने-से लगते, कभी हँसते और कभी सिंह-शावकके समान मुग्ध दृष्टिसे देखते ॥ २८ ॥ फिर कुछ बड़े होनेपर वे सफेद बैल और रंग-बिरंगी शोभाकी मूर्ति गौओंको चराते हुए अपने साथी गोपोंको बाँसुरी बजा- बजाकर रिझाने लगे ॥ २९ ॥ इसी समय जब कंसने उन्हें मारनेके लिये बहुत-से मायावी और मनमाना रूप धारण करनेवाले राक्षस भेजे, तब उनको खेल-ही-खेलमें भगवान्‌ने मार डालाजैसे बालक खिलौनोंको तोड़-फोड़ डालता है ॥ ३० ॥ कालियनागका दमन करके विष मिला हुआ जल पीनेसे मरे हुए ग्वालबालों और गौओंको जीवितकर उन्हें कालियदहका निर्दोष जल पीनेकी सुविधा कर दी ॥ ३१ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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