॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - दूसरा
अध्याय..(पोस्ट०८)
उद्धवजी
द्वारा भगवान् की बाललीलाओं का वर्णन
कौमारीं
दर्शयन् चेष्टां प्रेक्षणीयां व्रजौकसाम् ।
रुदन्निव
हसन्मुग्ध बालसिंहावलोकनः ॥ २८ ॥
स
एव गोधनं लक्ष्म्या निकेतं सितगोवृषम् ।
चारयन्
ननुगान् गोपान् रणद् वेणुररीरमत् ॥ २९ ॥
प्रयुक्तान्
भोजराजेन मायिनः कामरूपिणः ।
लीलया
व्यनुदत्तान् तान् बालः क्रीडनकानिव ॥ ३० ॥
विपन्नान्
विषपानेन निगृह्य भुजगाधिपम् ।
उत्थाप्यापाययद्
गावः तत्तोयं प्रकृतिस्थितम् ॥ ३१ ॥
वे
व्रजवासियोंकी दृष्टि आकृष्ट करनेके लिये अनेकों बाल-लीला उन्हें दिखाते थे। कभी
रोने-से लगते,
कभी हँसते और कभी सिंह-शावकके समान मुग्ध दृष्टिसे देखते ॥ २८ ॥ फिर
कुछ बड़े होनेपर वे सफेद बैल और रंग-बिरंगी शोभाकी मूर्ति गौओंको चराते हुए अपने
साथी गोपोंको बाँसुरी बजा- बजाकर रिझाने लगे ॥ २९ ॥ इसी समय जब कंसने उन्हें
मारनेके लिये बहुत-से मायावी और मनमाना रूप धारण करनेवाले राक्षस भेजे, तब उनको खेल-ही-खेलमें भगवान्ने मार डाला—जैसे बालक
खिलौनोंको तोड़-फोड़ डालता है ॥ ३० ॥ कालियनागका दमन करके विष मिला हुआ जल पीनेसे
मरे हुए ग्वालबालों और गौओंको जीवितकर उन्हें कालियदहका निर्दोष जल पीनेकी सुविधा
कर दी ॥ ३१ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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