Monday, February 26, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध- सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०६)




॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध- सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०६)

महाराज परीक्षित्‌द्वारा कलियुगका दमन

कलिरुवाच ।
यत्र क्वचन वत्स्यामि सार्वभौम तवाज्ञया ।
लक्षये तत्र तत्रापि त्वामात्तेषुशरासनम् ॥३६॥
तन्मे धर्मभृतां श्रेष्ठ स्थानं निर्देष्टुमर्हसि ।
यत्रैव नियतो वत्स्य आतिष्ठंस्तेऽनुशासनम् ॥३७॥

सूत उवाच ।
अभ्यर्थितस्तदा तस्मै स्थानादि कलये ददौ ।
द्यूतं पानं स्त्रियः सूना यत्राधर्मश्चतुर्विधः ॥३८॥
पुनश्च याचमानाय जातरूपमदात्प्रभुः ।
ततोऽनृतं मदं कामं रजो वैरं च पंचमम् ॥३९॥
अमूनि पंच स्थानानि ह्यधर्मप्रभवः कलिः ।
औत्तरेयेण दत्तानि न्यवसत् तन्निदेशकृत् ॥४०॥
अथैतानि न सेवेत बुभूषुः पुरुषःक्वचित् ।
विशेषतो धर्मशीलो राजा लोकपतिर्गुरुः ॥४१॥

कलि ने (राजा परीक्षित्‌से) कहासार्वभौम ! आपकी आज्ञासे जहाँ कहीं भी मैं रहनेका विचार करता हूँ, वहीं देखता हूँ कि आप धनुषपर बाण चढ़ाये खड़े हैं ॥ ३६ ॥ धार्मिक-शिरोमणे ! आप मुझे वह स्थान बतलाइये, जहाँ मैं आपकी आज्ञाका पालन करता हुआ स्थिर होकर रह सकूँ ॥ ३७ ॥
सूतजी कहते हैंकलियुग की प्रार्थना स्वीकार करके राजा परीक्षित्‌ ने उसे चार स्थान दियेद्यूत, मद्यपान, स्त्री-सङ्ग और हिंसा। इन स्थानों में क्रमश: असत्य, मद, आसक्ति और निर्दयताये चार प्रकार के अधर्म निवास करते हैं ॥ ३८ ॥ उसने और भी स्थान माँगे। तब समर्थ परीक्षित्‌ ने उसे रहने के लिये एक और स्थान—‘सुवर्ण’ (धन)दिया। इस प्रकार कलियुग के पाँच स्थान हो गयेझूठ, मद, काम, वैर और रजोगुण ॥ ३९ ॥ परीक्षित्‌ के दिये हुए इन्हीं पाँच स्थानों में अधर्म का मूल कारण कलि उनकी आज्ञाओं का पालन करता हुआ निवास करने लगा ॥ ४० ॥ इसलिये आत्मकल्याणकामी पुरुष को इन पाँचों स्थानों का सेवन कभी नहीं करना चाहिये। धार्मिक राजा, प्रजावर्ग के लौकिक नेता और धर्मोपदेष्टा गुरुओं को तो बड़ी सावधानी से इनका त्याग करना चाहिये ॥ ४१ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से



No comments:

Post a Comment

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-सातवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०९) भगवान्‌ के लीलावतारों की कथा भूमेः सुरेतरवरूथविमर्द...