॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय
स्कन्ध - दूसरा
अध्याय..(पोस्ट०९)
उद्धवजी
द्वारा भगवान् की बाललीलाओं का वर्णन
अयाजयद्
गोसवेन गोपराजं द्विजोत्तमैः ।
वित्तस्य
चोरुभारस्य चिकीर्षन् सद्व्ययं विभुः ॥ ३२ ॥
वर्षतीन्द्रे
व्रजः कोपाद् भग्नमानेऽतिविह्वलः ।
गोत्रलीलातपत्रेण
त्रातो भद्रानुगृह्णता ॥ ३३ ॥
शरच्छशिकरैर्मृष्टं
मानयन् रजनीमुखम् ।
गायन्
कलपदं रेमे स्त्रीणां मण्डलमण्डनः ॥ ३४ ॥
भगवान्
श्रीकृष्णने बढ़े हुए धनका सद्व्यय कराने की इच्छा से श्रेष्ठ ब्राह्मणों के
द्वारा नन्दबाबा से गोवर्धन-पूजारूप गोयज्ञ करवाया ॥ ३२ ॥ भद्र ! इससे अपना
मानभङ्ग होनेके कारण जब इन्द्रने क्रोधित होकर व्रजका विनाश करनेके लिये मूसलधार
जल बरसाना आरम्भ किया,
तब भगवान्ने करुणावश खेल-ही-खेलमें छत्तेके समान गोवर्धन पर्वतको
उठा लिया और अत्यन्त घबराये हुए व्रजवासियोंकी तथा उनके पशुओंकी रक्षा की ॥ ३३ ॥
सन्ध्याके समय जब सारे वृन्दावनमें शरद्के चन्द्रमाकी चाँदनी छिटक जाती, तब श्रीकृष्ण उसका सम्मान करते हुए मधुर गान करते और गोपियोंके मण्डलकी
शोभा बढ़ाते हुए उनके साथ रासविहार करते ॥ ३४ ॥
इति
श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
तृतीयस्कन्धे
विदुरोद्धवसंवादे द्वितीयोऽध्यायः ॥ २ ॥
हरिः
ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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