॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय
स्कन्ध- सातवाँ
अध्याय..(पोस्ट०९)
भगवान्
के लीलावतारों की कथा
भूमेः
सुरेतरवरूथविमर्दितायाः ।
क्लेशव्ययाय कलया सितकृष्णकेशः ।
जातः
करिष्यति जनानुपलक्ष्यमार्गः ।
कर्माणि चाऽऽत्ममहिमोपनिबन्धनानि ॥ २६ ॥
तोकेन
जीवहरणं यदुलूकिकायाः ।
त्रैमासिकस्य च पदा शकटोऽपवृत्तः ।
यद्
रिङ्गतान्तरगतेन दिविस्पृशोर्वा ।
उन्मूलनं त्वितरथाऽर्जुनयोर्न भाव्यम् ॥ २७ ॥
जिस
समय झुंड-के-झुंड दैत्य पृथ्वीको रौंद डालेंगे उस समय उसका भार उतारने के लिये
भगवान् अपने सफेद और काले केशसे बलराम और श्रीकृष्णके रूपमें कलावतार ग्रहण
करेंगे।[*] वे अपनी महिमा को प्रकट करनेवाले इतने अद्भुत चरित्र करेंगे कि संसारके
मनुष्य उनकी लीलाओंका रहस्य बिलकुल नहीं समझ सकेंगे ॥ २६ ॥ बचपन में ही पूतनाके
प्राण हर लेना,
तीन महीने की अवस्था में पैर उछालकर बड़ा भारी छकड़ा उलट देना और
घुटनों के बल चलते-चलते आकाश को छूनेवाले यमलार्जुन वृक्षों के बीच में जाकर
उन्हें उखाड़ डालना—ये सब ऐसे कर्म हैं, जिन्हें भगवान् के सिवा और कोई नहीं कर सकता ॥ २७ ॥
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[*] केशों के अवतार कहने का अभिप्राय यह है कि
पृथ्वी का भार उतारने के लिये तो भगवान् का एक केश ही काफी है । इसके अतिरिक्त
श्रीबलराम जी और श्रीकृष्ण के वर्णोंकी सूचना देने के लिये भी उन्हें क्रमश: सफेद
और काले केशों का अवतार कहा गया है। वस्तुत: श्रीकृष्ण तो पूर्णपुरुष स्वयं भगवान्
हैं—कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्।
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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