॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय
स्कन्ध- सातवाँ
अध्याय..(पोस्ट१०)
भगवान्
के लीलावतारों की कथा
यद्वै
व्रजे व्रजपशून् विषतोयपीतान् ।
पालांस्त्वजीव यदनुग्रहदृष्टिवृष्ट्या ।
तच्छुद्धयेऽतिविषवीर्य
विलोलजिह्वम् ।
उच्चाटयिष्यदुरगं विहरन् ह्रदिन्याम् ॥ २८ ॥
तत्कर्म
दिव्यमिव यन्निशि निःशयानं ।
दावाग्निना शुचिवने परिदह्यमाने ।
उन्नेष्यति
व्रजमतोऽवसितान्तकालं ।
नेत्रे पिधाप्य सबलोऽनधिगम्यवीर्यः ॥ २९ ॥
गृह्णीत
यद् यदुपबन्धममुष्य माता ।
शुल्बं सुतस्य न तु तत् तदमुष्य माति ।
यज्जृम्भतोऽस्य
वदने भुवनानि गोपी ।
संवीक्ष्य शंकितमनाः प्रतिबोधिताऽऽसीत् ॥ ३०
॥
नन्दं
च मोक्ष्यति भयाद् वरुणस्य पाशात् ।
गोपान् बिलेषु पिहितान् मयसूनुना च ।
अह्न्यापृतं
निशि शयानमतिश्रमेण ।
लोकं विकुण्ठ मुपनेष्यति गोकुलं स्म ॥ ३१ ॥
जब
कालियानाग के विषसे दूषित हुआ यमुना-जल पीकर बछड़े और गोपबालक मर जायँगे, तब वे अपनी सुधामयी कृपा-दृष्टिकी वर्षासे ही उन्हें जीवित कर देंगे और
यमुना-जलको शुद्ध करनेके लिये वे उसमें विहार करेंगे तथा विषकी शक्तिसे जीभ
लपलपाते हुए कालियनागको वहाँसे निकाल देंगे ॥ २८ ॥ उसी दिन रात को जब सब लोग वहीं
यमुना-तटपर सो जायँगे और दावाग्नि से आस-पासका मूँजका वन चारों ओरसे जलने लगेगा,
तब बलरामजीके साथ वे प्राणसङ्कटमें पड़े हुए व्रजवासियोंको उनकी
आँखें बंद कराकर उस अग्रिसे बचा लेंगे। उनकी यह लीला भी अलौकिक ही होगी। उनकी
शक्ति वास्तवमें अचिन्त्य है ॥ २९ ॥ उनकी माता उन्हें बाँधनेके लिये जो-जो रस्सी
लायेंगी वही उनके उदरमें पूरी नहीं पड़ेगी, दो अंगुल छोटी ही
रह जायगी। तथा जँभाई लेते समय श्रीकृष्णके मुखमें चौदहों भुवन देखकर पहले तो यशोदा
भयभीत हो जायँगी, परन्तु फिर वे सम्हल जायँगी ॥ ३० ॥ वे
नन्दबाबाको अजगरके भयसे और वरुणके पाशसे छुड़ायेंगे। मय दानवका पुत्र व्योमासुर जब
गोपबालोंको पहाडक़ी गुफाओंमें बंद कर देगा, तब वे उन्हें भी
वहाँसे बचा लायेंगे। गोकुल के लोगों को, जो दिनभर तो
काम-धंधों में व्याकुल रहते हैं और रात को अत्यन्त थककर सो जाते हैं, साधनाहीन होनेपर भी, वे अपने परमधाम में ले जायँगे ॥
३१ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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