॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय
स्कन्ध-तीसरा अध्याय..(पोस्ट०१)
कामनाओं
के अनुसार विभिन्न देवताओंकी उपासना
तथा
भगवद्भक्ति के प्राधान्य का निरूपण
श्रीशुक
उवाच ।
एवमेतन्निगदितं
पृष्टवान् यद् भवान् मम ।
नृणां
यन्म्रियमाणानां मनुष्येषु मनीषिणाम् ॥ १ ॥
ब्रह्मवर्चसकामस्तु
यजेत ब्रह्मणस्पतिम् ।
इन्द्रं
इन्द्रियकामस्तु प्रजाकामः प्रजापतीन् ॥ २ ॥
देवीं
मायां तु श्रीकामः तेजस्कामो विभावसुम् ।
वसुकामो
वसून् रुद्रान् वीर्यकामोऽथ वीर्यवान् ॥ ३ ॥
अन्नाद्यकामस्तु
अदितिं स्वर्गकामोऽदितेः सुतान् ।
विश्वान्
देवान् राज्यकामः साध्यान् संसाधको विशाम् ॥ ४ ॥
आयुष्कामोऽश्विनौ
देवौ पुष्टिकाम इलां यजेत् ।
प्रतिष्ठाकामः
पुरुषो रोदसी लोकमातरौ ॥ ५ ॥
श्रीशुकदेवजीने
कहा—परीक्षित् ! तुमने मुझसे जो पूछा था कि मरते समय बुद्धिमान् मनुष्यको
क्या करना चाहिये, उसका उत्तर मैंने तुम्हें दे दिया ॥ १ ॥
जो ब्रह्मतेज का इच्छुक हो, वह बृहस्पतिकी; जिसे इन्द्रियोंकी विशेष शक्तिकी कामना हो, वह
इन्द्रकी और जिसे सन्तानकी लालसा हो, वह प्रजापतियोंकी
उपासना करे ॥ २ ॥ जिसे लक्ष्मी चाहिये वह मायादेवीकी, जिसे
तेज चाहिये वह अग्रि की, जिसे धन चाहिये वह वसुओं की और जिस
प्रभावशाली पुरुष को वीरता की चाह हो उसे रुद्रोंकी उपासना करनी चाहिये ॥ ३ ॥ जिसे
बहुत अन्न प्राप्त करनेकी इच्छा हो वह अदितिका; जिसे
स्वर्गकी कामना हो वह अदितिके पुत्र देवताओंका, जिसे राज्यकी
अभिलाषा हो वह विश्वेदेवोंका और जो प्रजाको अपने अनुकूल बनानेकी इच्छा रखता हो उसे
साध्य देवताओंका आराधन करना चाहिये ॥ ४ ॥ आयुकी इच्छा से अश्विनीकुमारों का,
पुष्टि की इच्छासे पृथ्वीका और प्रतिष्ठा की चाह हो तो लोकमाता
पृथ्वी और द्यौ (आकाश) का सेवन करना चाहिये ॥ ५ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से

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