॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय
स्कन्ध-तीसरा अध्याय..(पोस्ट०२)
कामनाओं
के अनुसार विभिन्न देवताओंकी उपासना
तथा
भगवद्भक्ति के प्राधान्य का निरूपण
रूपाभिकामो
गन्धर्वान् स्त्रीकामोऽप्सर उर्वशीम् ।
आधिपत्यकामः
सर्वेषां यजेत परमेष्ठिनम् ॥ ६ ॥
यज्ञं
यजेत् यशस्कामः कोशकामः प्रचेतसम् ।
विद्याकामस्तु
गिरिशं दाम्पत्यार्थ उमां सतीम् ॥ ७ ॥
धर्मार्थ
उत्तमश्लोकं तन्तुं तन्वन् पितॄन् यजेत् ।
रक्षाकामः
पुण्यजनान् ओजस्कामो मरुद्गणान् ॥ ८ ॥
राज्यकामो
मनून् देवान् निर्ऋतिं त्वभिचरन् यजेत् ।
कामकामो
यजेत्सोमं अकामः पुरुषं परम् ॥ ९ ॥
अकामः
सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः ।
तीव्रेण
भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ॥ १० ॥
सौन्दर्यकी
चाह से गन्धर्वों की,
पत्नी की प्राप्ति के लिये उर्वशी अप्सराकी और सबका स्वामी बननेके
लिये ब्रह्माकी आराधना करनी चाहिये ॥ ६ ॥ जिसे यशकी इच्छा हो वह यज्ञपुरुषकी,
जिसे खजानेकी लालसा हो वह वरुणकी; विद्या
प्राप्त करनेकी आकाङ्क्षा हो तो भगवान् शङ्करकी और पति-पत्नीमें परस्पर प्रेम
बनाये रखनेके लिये पार्वतीजीकी उपासना करनी चाहिये ॥ ७ ॥ धर्म उपार्जन करनेके लिये
विष्णुभगवान् की, वंशपरम्परा की रक्षाके लिये पितरोंकी,
बाधाओंसे बचनेके लिये यक्षोंकी और बलवान् होनेके लिये मरुद्गणोंकी
आराधना करनी चाहिये ॥ ८ ॥ राज्यके लिये मन्वन्तरोंके अधिपति देवोंको, अभिचारके लिये निर्ऋतिको, भोगोंके लिये चन्द्रमाको
और निष्कामता प्राप्त करनेके लिये परम पुरुष नारायणको भजना चाहिये ॥ ९ ॥ और जो
बुद्धिमान् पुरुष है—वह चाहे निष्काम हो, समस्त कामनाओंसे युक्त हो अथवा मोक्ष चाहता हो—उसे
तो तीव्र भक्तियोगके द्वारा केवल पुरुषोत्तम भगवान् की ही आराधना करनी चाहिये ॥
१० ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से

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