Tuesday, March 13, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-पहला अध्याय..(पोस्ट०६)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध-पहला अध्याय..(पोस्ट०६)

ध्यान-विधि और भगवान्‌के विराट्स्वरूपका वर्णन

द्यौरक्षिणी चक्षुरभूत्पतङ्गः
    पक्ष्माणि विष्णोरहनी उभे च ।
तद्‍भ्रूविजृम्भः परमेष्ठिधिष्ण्यं
    आपोऽस्य तालू रस एव जिह्वा ॥ ३० ॥
छन्दांस्यनन्तस्य शिरो गृणंति
    दंष्ट्रा यमः स्नेहकला द्विजानि ।
हासो जनोन्मादकरी च माया
    दुरन्तसर्गो यदपाङ्गमोक्षः ॥ ३१ ॥
व्रीडोत्तरौष्ठोऽधर एव लोभो
    धर्मः स्तनोऽधर्मपथोऽस्य पृष्ठम् ।
कस्तस्य मेढ्रं वृषणौ च मित्रौ
    कुक्षिः समुद्रा गिरयोऽस्थिसङ्घाः ॥ ३२ ॥
नद्योऽस्य नाड्योऽथ तनूरुहाणि
    महीरुहा विश्वतनोर्नृपेन्द्र ।
अनन्तवीर्यः श्वसितं मातरिश्वा
    गतिर्वयः कर्म गुणप्रवाहः ॥ ३३ ॥

भगवान्‌ विष्णुके नेत्र अन्तरिक्ष हैं, उनमें देखनेकी शक्ति सूर्य है, दोनों पलकें रात और दिन हैं, उनका भ्रूविलास ब्रह्मलोक है। तालु जल हैं और जिह्वा रस ॥ ३० ॥ वेदोंको भगवान्‌का ब्रह्मरन्ध्र कहते हैं और यमको दाढ़ें। सब प्रकारके स्नेह दाँत हैं और उनकी जगन्मोहिनी मायाको ही उनकी मुसकान कहते हैं। यह अनन्त सृष्टि उसी मायाका कटाक्ष-विक्षेप है ॥ ३१ ॥ लज्जा ऊपरका होठ और लोभ नीचेका होठ है। धर्म स्तन और अधर्म पीठ है। प्रजापति उनके मूत्रेन्द्रिय हैं, मित्रावरुण अण्डकोश हैं, समुद्र कोख है और बड़े-बड़े पर्वत उनकी हड्डियाँ हैं ॥ ३२ ॥ राजन् ! विश्वमूर्ति विराट् पुरुषकी नाडिय़ाँ नदियाँ हैं। वृक्ष रोम हैं। परम प्रबल वायु श्वास है। काल उनकी चाल है और गुणोंका चक्कर चलाते रहना ही उनका कर्म है ॥ ३३ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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