Tuesday, March 13, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-पहला अध्याय..(पोस्ट०७)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध-पहला अध्याय..(पोस्ट०७)

ध्यान-विधि और भगवान्‌के विराट्स्वरूपका वर्णन

ईशस्य केशान्न् विदुरम्बुवाहान्
    वासस्तु सन्ध्यां कुरुवर्य भूम्नः ।
अव्यक्तमाहुः हृदयं मनश्च
    स चन्द्रमाः सर्वविकारकोशः ॥ ३४ ॥
विज्ञानशक्तिं महिमामनन्ति
    सर्वात्मनोऽन्तःकरणं गिरित्रम् ।
अश्वाश्वतर्युष्ट्रगजा नखानि
    सर्वे मृगाः पशवः श्रोणिदेशे ॥ ३५ ॥
वयांसि तद् व्याकरणं विचित्रं
    मनुर्मनीषा मनुनो निवासः ।
गंधर्वविद्याधरचारणाप्सरः
    स्वरस्मृतीः असुरानीकवीर्यः ॥ ३६ ॥

परीक्षित्‌ ! बादलोंको उनके केश मानते हैं। सन्ध्या उन अनन्त का वस्त्र है। महात्माओंने अव्यक्त (मूलप्रकृति) को ही उनका हृदय बतलाया है और सब विकारोंका खजाना उनका मन चन्द्रमा कहा गया है ॥ ३४ ॥ महत्तत्त्वको सर्वात्मा भगवान्‌का चित्त कहते हैं और रुद्र उनके अहंकार कहे गये हैं। घोड़े, खच्चर, ऊँट और हाथी उनके नख हैं। वनमें रहनेवाले सारे मृग और पशु उनके कटिप्रदेशमें स्थित हैं ॥ ३५ ॥ तरह-तरहके पक्षी उनके अद्भुत रचना-कौशल हैं। स्वायम्भुव मनु उनकी बुद्धि हैं और मनुकी सन्तान मनुष्य उनके निवासस्थान हैं। गन्धर्व, विद्याधर, चारण और अप्सराएँ उनके षड्ज आदि स्वरोंकी स्मृति हैं। दैत्य उनके वीर्य हैं ॥ ३६ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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