Tuesday, March 13, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-पहला अध्याय..(पोस्ट०५)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध-पहला अध्याय..(पोस्ट०५)

ध्यान-विधि और भगवान्‌के विराट्स्वरूपका वर्णन

पातालमेतस्य हि पादमूलं
    पठंति पार्ष्णिप्रपदे रसातलम् ।
महातलं विश्वसृजोऽथ गुल्फौ
    तलातलं वै पुरुषस्य जङ्घे ॥ २६ ॥
द्वे जानुनी सुतलं विश्वमूर्तेः
    ऊरुद्वयं वितलं चातलं च ।
महीतलं तज्जघनं महीपते
    नभस्तलं नाभिसरो गृणन्ति ॥ २७ ॥
उरःस्थलं ज्योतिरनीकमस्य
    ग्रीवा महर्वदनं वै जनोऽस्य ।
तपो रराटीं विदुरादिपुंसः
    सत्यं तु शीर्षाणि सहस्रशीर्ष्णः ॥ २८ ॥
इन्द्रादयो बाहव आसुरुस्राः
    कर्णौ दिशः श्रोत्रममुष्य शब्दः ।
नासत्यदस्रौ परमस्य नासे
    घ्राणोऽस्य गंधो मुखमग्निरिद्धः ॥ २९ ॥

तत्त्वज्ञ पुरुष उनका (विराट् पुरुष भगवान्‌ का) इस प्रकार वर्णन करते हैंपाताल विराट् पुरुष के तलवे हैं, उनकी एडिय़ाँ और पंजे रसातल हैं, दोनों गुल्फएड़ीके ऊपर की गाँठें महातल हैं, उनके पैरके पिंडे तलातल हैं, ॥ २६ ॥ विश्वमूर्ति भगवान्‌ के दोनों घुटने सुतल हैं, जाँघें वितल और अतल हैं, पेडू भूतल है, और परीक्षित्‌ ! उनके नाभिरूप सरोवर को ही आकाश कहते हैं ॥ २७ ॥ आदिपुरुष परमात्मा की छाती को स्वर्गलोक, गले को महर्लोक, मुख को जनलोक और ललाट को तपोलोक कहते हैं। उन सहस्र सिरवाले भगवान्‌का मस्तकसमूह ही सत्यलोक है ॥ २८ ॥ इन्द्रादि देवता उनकी भुजाएँ हैं। दिशाएँ कान और शब्द श्रवणेन्द्रिय हैं। दोनों अश्विनीकुमार उनकी नासिकाके छिद्र हैं; गन्ध घ्राणेन्द्रिय है और धधकती हुई आग उनका मुख है ॥ २९ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



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