Sunday, March 25, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध-पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

सृष्टि-वर्णन

कालं कर्म स्वभावं च मायेशो मायया स्वया ।
आत्मन् यदृच्छया प्राप्तं विबुभूषुरुपाददे ॥ २१ ॥
कालाद् गुणव्यतिकरः परिणामः स्वभावतः ।
कर्मणो जन्म महतः पुरुषाधिष्ठितात् अभूत् ॥ २२ ॥
महतस्तु विकुर्वाणाद् रजःसत्त्वोपबृंहितात् ।
तमःप्रधानस्त्वभवद् द्रव्यज्ञानक्रियात्मकः ॥ २३ ॥
सोऽहङ्कार इति प्रोक्तो विकुर्वन्समभूत् त्रिधा ।
वैकारिकस्तैजसश्च तामसश्चेति यद्‌भिदा ।
द्रव्यशक्तिः क्रियाशक्तिः ज्ञानशक्तिरिति प्रभो ॥ २४ ॥
तामसादपि भूतादेः विकुर्वाणाद् अभूत् नभः ।
तस्य मात्रा गुणः शब्दो लिङ्गं यद् द्रष्टृदृश्ययोः ॥ २५ ॥

(ब्रह्माजी कहते हैं) मायापति भगवान्‌ ने एक से बहुत होने की इच्छा होने पर अपनी माया से अपने स्वरूपमें स्वयं प्राप्त काल, कर्म और स्वभाव को स्वीकार कर लिया ॥ २१ ॥ भगवान्‌की शक्तिसे ही काल ने तीनों गुणों में क्षोभ उत्पन्न कर दिया, स्वभावने उन्हें रूपान्तरित कर दिया और कर्मने महत्तत्त्वको जन्म दिया ॥ २२ ॥ रजोगुण और सत्त्वगुणकी वृद्धि होनेपर महत्तत्त्वका जो विकार हुआ, उससे ज्ञान, क्रिया और द्रव्यरूप तम:प्रधान विकार हुआ ॥ २३ ॥ वह अहंकार कहलाया और विकारको प्राप्त होकर तीन प्रकारका हो गया। उसके भेद हैंवैकारिक, तैजस और तामस। नारदजी ! वे क्रमश: ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति और द्रव्यशक्तिप्रधान हैं ॥ २४ ॥ जब पञ्चमहाभूतोंके कारणरूप तामस अहंकारमें विकार हुआ, तब उससे आकाशकी उत्पत्ति हुई। आकाशकी तन्मात्रा और गुण शब्द है। इस शब्दके द्वारा ही द्रष्टा और दृश्यका बोध होता है ॥ २५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



No comments:

Post a Comment

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-सातवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०९) भगवान्‌ के लीलावतारों की कथा भूमेः सुरेतरवरूथविमर्द...