Monday, February 26, 2018

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध- अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०३)




॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध- अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०३)

राजा परीक्षत् को शृङ्गी ऋषिका शाप

को नाम तृप्येद् रसवित्कथायां
    महत्तमैकान्त परायणस्य ।
नान्तं गुणानां अगुणस्य जग्मुः
    योगेश्वरा ये भवपाद्ममुख्याः ॥ १४ ॥
तन्नो भवान् वै भगवत्प्रधानो
    महत्तमैकान्त परायणस्य ।
हरेरुदारं चरितं विशुद्धं
    शुश्रूषतां नो वितनोतु विद्वन् ॥ १५ ॥
स वै महाभागवतः परीक्षिद्
    येनापवर्गाख्यमदभ्रबुद्धिः ।
ज्ञानेन वैयासकिशब्दितेन
    भेजे खगेन्द्रध्वजपादमूलम् ॥ १६ ॥
तन्नः परं पुण्यमसंवृतार्थं
    आख्यानमत्यद्‍भुत योगनिष्ठम् ।
आख्याह्यनन्ता चरितोपपन्नं
    पारीक्षितं भागवताभिरामम् ॥ १७ ॥

ऐसा कौन रस-मर्मज्ञ होगा, जो महापुरुषोंके एकमात्र जीवन-सर्वस्व श्रीकृष्णकी लीला-कथाओंसे तृप्त हो जाय ? समस्त प्राकृत गुणोंसे अतीत भगवान्‌के अचिन्त्य अनन्त कल्याणमय गुणगणोंका पार तो ब्रह्मा, शङ्कर आदि बड़े-बड़े योगेश्वर भी नहीं पा सके ॥ १४ ॥ विद्वन् ! आप भगवान्‌को ही अपने जीवनका ध्रुवतारा मानते हैं। इसलिये आप सत्पुरुषोंके एकमात्र आश्रय भगवान्‌के उदार और विशुद्ध चरित्रोंका हम श्रद्धालु श्रोताओंके लिये विस्तारसे वर्णन कीजिये ॥ १५ ॥ भगवान्‌के परम प्रेमी महाबुद्धि परीक्षित्‌ने श्रीशुकदेवजीके उपदेश किये हुए जिस ज्ञानसे मोक्षस्वरूप भगवान्‌के चरणकमलोंको प्राप्त किया, आप कृपा करके उसी ज्ञान और परीक्षित्‌के परम पवित्र उपाख्यानका वर्णन कीजिये; क्योंकि उसमें कोई बात छिपाकर नहीं कही गयी होगी और भगवत्प्रेमकी अद्भुत योगनिष्ठाका निरूपण किया गया होगा। उसमें पद-पदपर भगवान्‌ श्रीकृष्णकी लीलाओंका वर्णन हुआ होगा। भगवान्‌के प्यारे भक्तोंको वैसा प्रसङ्ग सुननेमें बड़ा रस मिलता है ॥ १६-१७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से



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