॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--सातवाँ अध्याय..(पोस्ट ०५)
अश्वत्थामाद्वारा
द्रौपदी के पुत्रोंका मारा जाना और
अर्जुनके
द्वारा अश्वत्थामाका मानमर्दन
अर्जुन
उवाच ।
कृष्ण
कृष्ण महाबाहो भक्तानामभयङ्कर ।
त्वमेको
दह्यमानानां अपवर्गोऽसि संसृतेः ॥ २२ ॥
त्वमाद्यः
पुरुषः साक्षाद् ईश्वरः प्रकृतेः परः ।
मायां
व्युदस्य चिच्छक्त्या कैवल्ये स्थित आत्मनि ॥ २३ ॥
स
एव जीवलोकस्य मायामोहितचेतसः ।
विधत्से
स्वेन वीर्येण श्रेयो धर्मादिलक्षणम् ॥ २४ ॥
तथायं
चावतारस्ते भुवो भारजिहीर्षया ।
स्वानां
चानन्यभावानां अनुध्यानाय चासकृत् ॥ २५ ॥
किमिदं
स्वित्कुतो वेति देवदेव न वेद्म्यहम् ।
सर्वतो
मुखमायाति तेजः परमदारुणम् ॥ २६ ॥
श्रीभगवानुवाच
।
वेत्थेदं
द्रोणपुत्रस्य ब्राह्ममस्त्रं प्रदर्शितम् ।
नैवासौ
वेद संहारं प्राणबाध उपस्थिते ॥ २७ ॥
न
ह्यस्यान्यतमं किञ्चिद् अस्त्रं प्रत्यवकर्शनम् ।
जह्यस्त्रतेज
उन्नद्धं अस्त्रज्ञो ह्यस्त्रतेजसा ॥ २८ ॥
अर्जुनने
कहा—श्रीकृष्ण ! तुम सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा हो। तुम्हारी शक्ति अनन्त है।
तुम्हीं भक्तोंको अभय देनेवाले हो। जो संसारकी धधकती हुई आगमें जल रहे हैं,
उन जीवोंको उससे उबारनेवाले एकमात्र तुम्हीं हो ॥ २२ ॥ तुम
प्रकृतिसे परे रहनेवाले आदिपुरुष साक्षात् परमेश्वर हो। अपनी चित्-शक्ति
(स्वरूप-शक्ति) से बहिरङ्ग एवं त्रिगुणमयी मायाको दूर भगाकर अपने अद्वितीय
स्वरूपमें स्थित हो ॥ २३ ॥ वही तुम अपने प्रभावसे माया-मोहित जीवोंके लिये धर्मादिरूप
कल्याणका विधान करते हो ॥ २४ ॥ तुम्हारा यह अवतार पृथ्वीका भार हरण करनेके लिये और
तुम्हारे अनन्य प्रेमी भक्तजनों के निरन्तर स्मरण-ध्यान करने के लिये है ॥ २५ ॥
स्वयंप्रकाशस्वरूप श्रीकृष्ण ! यह भयङ्कर तेज सब ओर से मेरी ओर आ रहा है। यह क्या
है, कहाँसे, क्यों आ रहा है—इसका मुझे बिलकुल पता नहीं है ! ॥ २६ ॥
भगवान्ने
कहा—अर्जुन ! यह अश्वत्थामाका चलाया हुआ ब्रह्मास्त्र है। यह बात समझ लो कि
प्राण-संकट उपस्थित होने से उसने इसका प्रयोग तो कर दिया है, परन्तु वह इस अस्त्र को लौटाना नहीं जानता ॥ २७ ॥ किसी भी दूसरे अस्त्र में
इसको दबा देने की शक्ति नहीं है। तुम शस्त्रास्त्र-विद्या को भलीभाँति जानते ही हो,
ब्रह्मास्त्र के तेज से ही इस ब्रह्मास्त्र की प्रचण्ड आग को बुझा
दो ॥ २८ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से

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