॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--तीसरा अध्याय..(पोस्ट०७)
भगवान्के
अवतारोंका वर्णन
एकोनविंशे
विंशतिमे वृष्णिषु प्राप्य जन्मनी ।
रामकृष्णाविति
भुवो भगवान् अहरद् भरम् ॥ २३ ॥
ततः
कलौ संप्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम् ।
बुद्धो
नाम्नांजनसुतः कीकटेषु भविष्यति ॥ २४ ॥
अथासौ
युगसंध्यायां दस्युप्रायेषु राजसु ।
जनिता
विष्णुयशसो नाम्ना कल्किर्जगत्पतिः ॥ २५ ॥
उन्नीसवें
और बीसवें अवतारोंमें उन्होंने यदुवंशमें बलराम और श्रीकृष्णके नामसे प्रकट होकर
पृथ्वीका भार उतारा ॥ २३ ॥ उसके बाद कलियुग आ जानेपर मगधदेश (बिहार) में देवताओंके
द्वेषी दैत्योंको मोहित करनेके लिये अजनके पुत्ररूप में आपका बुद्धावतार होगा ॥ २४
॥ इसके भी बहुत पीछे जब कलियुगका अन्त समीप होगा और राजालोग प्राय: लुटेरे हो
जायँगे,
तब जगत् के रक्षक भगवान् विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर कल्किरूपमें
अवतीर्ण होंगे [*] ॥ २५ ॥
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[*]
यहाँ बाईस अवतारोंकी गणना की गयी है, परंतु भगवान्के
चौबीस अवतार प्रसिद्ध हैं। कुछ विद्वान् चौबीसकी संख्या यों पूर्ण करते हैं—राम-कृष्णके अतिरिक्त बीस अवतार तो उपर्युक्त हैं ही; शेष चार अवतार श्रीकृष्णके ही अंश हैं। स्वयं श्रीकृष्ण तो पूर्ण परमेश्वर
हैं; वे अवतार नहीं, अवतारी हैं। अत:
श्रीकृष्णको अवतारोंकी गणनामें नहीं गिनते। उनके चार अंश ये हैं—एक तो केशका अवतार, दूसरा सुतपा तथा पृश्नि पर कृपा
करनेवाला अवतार, तीसरा संकर्षण-बलराम और चौथा परब्रह्म । इस
प्रकार इन चार अवतारों से विशिष्ट पाँचवें साक्षात् भगवान् वासुदेव हैं। दूसरे
विद्वान् ऐसा मानते हैं कि बाईस अवतार तो उपर्युक्त हैं ही; इनके
अतिरिक्त दो और हैं—हंस और हयग्रीव।
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से

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