॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--तीसरा अध्याय..(पोस्ट०८)
भगवान्के
अवतारोंका वर्णन
अवतारा
ह्यसङ्ख्येया हरेः सत्त्वनिधेर्द्विजाः ।
यथाविदासिनः
कुल्याः सरसः स्युः सहस्रशः ॥ २६ ॥
ऋषयो
मनवो देवा मनुपुत्रा महौजसः ।
कलाः
सर्वे हरेरेव सप्रजापतयः तथा ॥ २७ ॥
एते
चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् ।
इन्द्रारिव्याकुलं
लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥ २८ ॥
जन्म
गुह्यं भगवतो य एतत्प्रयतो नरः ।
सायं
प्रातर्गृणन् भक्त्या दुःखग्रामाद् विमुच्यते ॥ २९ ॥
शौनकादि
ऋषियो ! जैसे अगाध सरोवरसे हजारों छोटे-छोटे नाले निकलते हैं, वैसे ही सत्त्वनिधि भगवान् श्रीहरिके असंख्य अवतार हुआ करते हैं ॥ २६ ॥
ऋषि, मनु, देवता, प्रजापति, मनुपुत्र और जितने भी महान् शक्तिशाली हैं,
वे सब-के-सब भगवान्के ही अंश हैं ॥ २७ ॥ ये सब अवतार तो भगवान्के
अंशावतार अथवा कलावतार हैं, परन्तु भगवान् श्रीकृष्ण तो
स्वयं भगवान् (अवतारी) ही हैं। जब लोग दैत्योंके अत्याचारसे व्याकुल हो उठते हैं,
तब युग-युगमें अनेक रूप धारण करके भगवान् उनकी रक्षा करते हैं ॥ २८
॥ भगवान्के दिव्य जन्मोंकी यह कथा अत्यन्त गोपनीय—रहस्यमयी
है; जो मनुष्य एकाग्र चित्तसे नियमपूर्वक सायंकाल और
प्रात:काल प्रेमसे इसका पाठ करता है, वह सब दु:खोंसे छूट
जाता है ॥ २९ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से

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