॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--तीसरा अध्याय..(पोस्ट०६)
भगवान्के
अवतारोंका वर्णन
पञ्चदशं
वामनकं कृत्वागादध्वरं बलेः ।
पदत्रयं
याचमानः प्रत्यादित्सुस्त्रिविष्टपम् ॥ १९ ॥
अवतारे
षोडशमे पश्यन् ब्रह्मद्रुहो नृपान् ।
त्रिःसप्तकृत्वः
कुपितो निःक्षत्रां अकरोन् महीम् ॥ २० ॥
ततः
सप्तदशे जातः सत्यवत्यां पराशरात् ।
चक्रे
वेदतरोः शाखा दृष्ट्वा पुंसोऽल्पमेधसः ॥ २१ ॥
नरदेवत्वमापन्नः
सुरकार्यचिकीर्षया ।
समुद्रनिग्रहादीनि
चक्रे वीर्याण्यतः परम् ॥ २२ ॥
पंद्रहवीं
बार वामनका रूप धारण करके भगवान् दैत्यराज बलिके यज्ञमें गये। वे चाहते तो थे
त्रिलोकीका राज्य,
परन्तु माँगी उन्होंने केवल तीन पग पृथ्वी ॥ १९ ॥ सोलहवें परशुराम
अवतारमें जब उन्होंने देखा कि राजालोग ब्राह्मणों के द्रोही हो गये हैं, तब क्रोधित होकर उन्होंने पृथ्वीको इक्कीस बार क्षत्रियोंसे शून्य कर दिया
॥ २० ॥ इसके बाद सत्रहवें अवतारमें सत्यवतीके गर्भसे पराशरजीके द्वारा वे व्यासके
रूपमें अवतीर्ण हुए। उस समय लोगोंकी समझ और धारणाशक्ति कम देखकर आपने वेदरूप
वृक्षकी कई शाखाएँ बना दीं ॥ २१ ॥ अठारहवीं बार देवताओंका कार्य सम्पन्न करनेकी
इच्छासे उन्होंने राजाके रूपमें रामावतार ग्रहण किया और सेतु-बन्धन, रावणवध आदि वीरतापूर्ण बहुत-सी लीलाएँ कीं ॥ २२ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से

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