॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--बारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०१)
परीक्षित्
का जन्म
शौनक
उवाच ।
अश्वत्थाम्नोपसृष्टेन
ब्रह्मशीर्ष्णोरुतेजसा ।
उत्तराया
हतो गर्भ ईशेनाजीवितः पुनः ॥ १ ॥
तस्य
जन्म महाबुद्धेः कर्माणि च महात्मनः ।
निधनं
च यथैवासीत् स प्रेत्य गतवान् यथा ॥ २ ॥
तदिदं
श्रोतुमिच्छामो गदितुं यदि मन्यसे ।
ब्रूहि
नः श्रद्दधानानां यस्य ज्ञानमदाच्छुकः ॥ ३ ॥
सूत
उवाच ।
अपीपलद्धर्मराजः
पितृवद् रञ्जयन् प्रजाः ।
निःस्पृहः
सर्वकामेभ्यः कृष्णपादानुसेवया ॥ ४ ॥
सम्पदः
क्रतवो लोका महिषी भ्रातरो मही ।
जम्बूद्वीपाधिपत्यं
च यशश्च त्रिदिवं गतम् ॥ ५ ॥
किं
ते कामाः सुरस्पार्हा मुकुन्दमनसो द्विजाः ।
अधिजह्रुर्मुदं
राज्ञः क्षुधितस्य यथेतरे ॥ ६ ॥
शौनकजीने
कहा—अश्वत्थामा ने जो अत्यन्त तेजस्वी ब्रह्मास्त्र चलाया था, उससे उत्तरा का गर्भ नष्ट हो गया था; परन्तु भगवान्ने
उसे पुन: जीवित कर दिया ॥ १ ॥ उस गर्भसे पैदा हुए महाज्ञानी महात्मा परीक्षित्के,
जिन्हें शुकदेवजीने ज्ञानोपदेश दिया था, जन्म,
कर्म, मृत्यु और उसके बाद जो गति उन्हें
प्राप्त हुई, वह सब यदि आप ठीक समझें तो कहें; हमलोग बड़ी श्रद्धाके साथ सुनना चाहते हैं ॥ २-३ ॥
सूतजीने
कहा—धर्मराज युधिष्ठिर अपनी प्रजाको प्रसन्न रखते हुए पिताके समान उसका पालन
करने लगे। भगवान् श्रीकृष्ण के चरण-कमलों के सेवन से वे समस्त भोगों से नि:स्पृह
हो गये थे ॥ ४ ॥ शौनकादि ऋषियो ! उनके पास
अतुल सम्पत्ति थी, उन्होंने बड़े-बड़े यज्ञ किये थे तथा उनके
फलस्वरूप श्रेष्ठ लोकोंका अधिकार प्राप्त किया था। उनकी रानियाँ और भाई अनुकूल थे,
सारी पृथ्वी उनकी थी, वे जम्बूद्वीपके स्वामी
थे और उनकी कीर्ति स्वर्गतक फैली हुई थी ॥ ५ ॥ उनके पास भोगकी ऐसी सामग्री थी,
जिसके लिये देवतालोग भी लालायित रहते हैं। परन्तु जैसे भूखे
मनुष्यको भोजनके अतिरिक्त दूसरे पदार्थ नहीं सुहाते, वैसे ही
उन्हें भगवान्के सिवा दूसरी कोई वस्तु सुख नहीं देती थी ॥ ६ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से
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