॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--बारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०३)
परीक्षित्
का जन्म
ततः
सर्वगुणोदर्के सानुकूल ग्रहोदये ।
जज्ञे
वंशधरः पाण्डोः भूयः पाण्डुरिवौजसा ॥ १२ ॥
तस्य
प्रीतमना राजा विप्रैर्धौम्य कृपादिभिः ।
जातकं
कारयामास वाचयित्वा च मङ्गलम् ॥ १३ ॥
हिरण्यं
गां महीं ग्रामान् हस्त्यश्वान् नृपतिर्वरान् ।
प्रादात्स्वन्नं
च विप्रेभ्यः प्रजातीर्थे स तीर्थवित् ॥ १४ ॥
तमूचुर्ब्राह्मणास्तुष्टा
राजानं प्रश्रयान्वितम् ।
एष
ह्यस्मिन् प्रजातन्तौ पुरूणां पौरवर्षभ ॥ १५ ॥
दैवेनाप्रतिघातेन
शुक्ले संस्थामुपेयुषि ।
रातो
वोऽनुग्रहार्थाय विष्णुना प्रभविष्णुना ॥ १६ ॥
तस्मान्नाम्ना
विष्णुरात इति लोके बृहच्छ्रवाः ।
भविष्यति
न सन्देहो महाभागवतो महान् ॥ १७ ॥
तदनन्तर
अनुकूल ग्रहोंके उदयसे युक्त समस्त सद्गुणोंको विकसित करनेवाले शुभ समयमें
पाण्डुके वंशधर परीक्षित्का जन्म हुआ। जन्मके समय ही वह बालक इतना तेजस्वी दीख
पड़ता था,
मानो स्वयं पाण्डुने ही फिरसे जन्म लिया हो ॥ १२ ॥ पौत्रके जन्मकी
बात सुनकर राजा युधिष्ठिर मनमें बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने धौम्य, कृपाचार्य आदि ब्राह्मणोंसे मङ्गलवाचन और जातकर्म-संस्कार करवाये ॥ १३ ॥
महाराज युधिष्ठिर दानके योग्य समयको जानते थे। उन्होंने प्रजातीर्थ [*] नामक
कालमें अर्थात् नाल काटनेके पहले ही ब्राह्मणोंको सुवर्ण, गौएँ,
पृथ्वी, गाँव, उत्तम
जातिके हाथी- घोड़े और उत्तम अन्नका दान दिया ॥ १४ ॥ ब्राह्मणोंने सन्तुष्ट होकर
अत्यन्त विनयी युधिष्ठिरसे कहा—‘पुरुवंश-शिरोमणे ! कालकी दुर्निवार
गतिसे यह पवित्र पुरुवंश मिटना ही चाहता था, परन्तु
तुमलोगोंपर कृपा करनेके लिये भगवान् विष्णुने यह बालक देकर इसकी रक्षा कर दी ॥
१५-१६ ॥ इसीलिये इसका नाम विष्णुरात होगा। निस्सन्देह यह बालक संसारमें बड़ा
यशस्वी, भगवान्का परम भक्त और महापुरुष होगा’ ॥ १७ ॥
.....................................................
[*]
नालच्छेदनसे पहले सूतक नहीं होता, जैसे कहा है—‘यावन्न छिद्यते नालं तावन्नाप्नोति सूतकम्। छिन्ने नाले तत: पश्चात् सूतकं
तु विधीयते ॥’ इसी समयको ‘प्रजातीर्थ’
काल कहते हैं। इस समय जो दान दिया जाता है, वह
अक्षय होता है। स्मृति कहती है—‘पुत्रे जाते व्यतीपाते दत्तं
भवति चाक्षयम्।’ अर्थात् ‘पुत्रोत्पत्ति
और व्यतीपातके समय दिया हुआ दान अक्षय होता है।’
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से
No comments:
Post a Comment