॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--बारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०४)
परीक्षित्
का जन्म
युधिष्ठिर
उवाच ।
अप्येष
वंश्यान् राजर्षीन् पुण्यश्लोकान् महात्मनः ।
अनुवर्तिता
स्विद्यशसा साधुवादेन सत्तमाः ॥ १८ ॥
ब्राह्मणा
ऊचुः ।
पार्थ
प्रजाविता साक्षात् इक्ष्वाकुरिव मानवः ।
ब्रह्मण्यः
सत्यसन्धश्च रामो दाशरथिर्यथा ॥ १९ ॥
एष
दाता शरण्यश्च यथा ह्यौशीनरः शिबिः ।
यशो
वितनिता स्वानां दौष्यन्तिरिव यज्वनाम् ॥ २० ॥
धन्विनामग्रणीरेष
तुल्यश्चार्जुनयोर्द्वयोः ।
हुताश
इव दुर्धर्षः समुद्र इव दुस्तरः ॥ २१ ॥
मृगेन्द्र
इव विक्रान्तो निषेव्यो हिमवानिव ।
तितिक्षुर्वसुधेवासौ
सहिष्णुः पितराविव ॥ २२ ॥
पितामहसमः
साम्ये प्रसादे गिरिशोपमः ।
आश्रयः
सर्वभूतानां यथा देवो रमाश्रयः ॥ २३ ॥
सर्वसद्गुणमाहात्म्ये
एष कृष्णमनुव्रतः ।
रन्तिदेव
इवोदारो ययातिरिव धार्मिकः ॥ २४ ॥
युधिष्ठिरने
कहा—महात्माओ ! यह बालक क्या अपने उज्ज्वल यशसे हमारे वंशके पवित्रकीर्ति
महात्मा राजर्षियोंका अनुसरण करेगा ? ॥ १८ ॥
ब्राह्मणोंने
कहा—धर्मराज ! यह मनुपुत्र इक्ष्वाकु के समान अपनी प्रजाका पालन करेगा तथा
दशरथनन्दन भगवान् श्रीरामके समान ब्राह्मणभक्त और सत्यप्रतिज्ञ होगा ॥ १९ ॥ यह
उशीनर- नरेश शिबिके समान दाता और शरणागतवत्सल होगा तथा याज्ञिकोंमें दुष्यन्तके
पुत्र भरतके समान अपने वंशका यश फैलायेगा ॥ २० ॥ धनुर्धरोंमें यह सहस्रबाहु अर्जुन
और अपने दादा पार्थके समान अग्रगण्य होगा। यह अग्रिके समान दुर्धर्ष और समुद्रके
समान दुस्तर होगा ॥ २१ ॥ यह सिंहके समान पराक्रमी, हिमाचलकी
तरह आश्रय लेनेयोग्य, पृथ्वीके सदृश तितिक्षु और माता-
पिताके समान सहनशील होगा ॥ २२ ॥ इसमें पितामह ब्रह्माके समान समता रहेगी, भगवान् शङ्करकी तरह यह कृपालु होगा और सम्पूर्ण प्राणियोंको आश्रय
देनेमें यह लक्ष्मीपति भगवान् विष्णुके समान होगा ॥ २३ ॥ यह समस्त सद्गुणोंकी
महिमा धारण करनेमें श्रीकृष्णका अनुयायी होगा, रन्तिदेवके
समान उदार होगा और ययातिके समान धार्मिक होगा ॥ २४ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से
No comments:
Post a Comment