॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--तीसरा अध्याय..(पोस्ट०३)
भगवान्के
अवतारोंका वर्णन
पञ्चमः
कपिलो नाम सिद्धेशः कालविप्लुतम् ।
प्रोवाचासुरये
सांख्यं तत्त्वग्रामविनिर्णयम् ॥ १० ॥
षष्ठे
अत्रेरपत्यत्वं वृतः प्राप्तोऽनसूयया ।
आन्वीक्षिकीमलर्काय
प्रह्लादादिभ्य ऊचिवान् ॥ ११ ॥
ततः
सप्तम आकूत्यां रुचेर्यज्ञोऽभ्यजायत ।
स
यामाद्यैः सुरगणैः अपात् स्वायंभुवान्तरम् ॥ १२ ॥
पाँचवें
अवतारमें वे सिद्धोंके स्वामी कपिलके रूपमें प्रकट हुए और तत्त्वोंका निर्णय
करनेवाले सांख्य- शास्त्रका, जो समयके फेरसे लुप्त हो गया था,
आसुरि नामक ब्राह्मणको उपदेश किया ॥ १० ॥ अनसूयाके वर माँगनेपर छठे
अवतारमें वे अत्रिकी सन्तान—दत्तात्रेय हुए। इस अवतारमें
उन्होंने अलर्क एवं प्रह्लाद आदिको ब्रह्मज्ञानका उपदेश किया ॥ ११ ॥ सातवीं बार
रुचि प्रजापतिकी आकूति नामक पत्नीसे यज्ञके रूपमें उन्होंने अवतार ग्रहण किया और
अपने पुत्र याम आदि देवताओंके साथ स्वायम्भुव मन्वन्तरकी रक्षा की ॥ १२ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से

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