॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--तीसरा अध्याय..(पोस्ट०४)
भगवान्के
अवतारोंका वर्णन
अष्टमे
मेरुदेव्यां तु नाभेर्जात उरुक्रमः ।
दर्शयन्वर्त्म
धीराणां सर्वाश्रम नमस्कृतम् ॥ १३ ॥
ऋषिभिर्याचितो
भेजे नवमं पार्थिवं वपुः ।
दुग्धेमामोषधीर्विप्राः
तेनायं स उशत्तमः ॥ १४ ॥
रूपं
स जगृहे मात्स्यं चाक्षुषोदधिसंप्लवे ।
नाव्यारोप्य
महीमय्यां अपाद् वैवस्वतं मनुम् ॥ १५ ॥
राजा
नाभिकी पत्नी मेरु देवीके गर्भसे ऋषभदेवके रूपमें भगवान्ने आठवाँ अवतार ग्रहण किया।
इस रूपमें उन्होंने परमहंसोंका वह मार्ग, जो सभी आश्रमियोंके
लिये वन्दनीय है, दिखाया ॥ १३ ॥ ऋषियोंकी प्रार्थनासे नवीं
बार वे राजा पृथुके रूपमें अवतीर्ण हुए। शौनकादि ऋषियो ! इस अवतारमें उन्होंने
पृथ्वीसे समस्त ओषधियोंका दोहन किया था, इससे यह अवतार सबके
लिये बड़ा ही कल्याणकारी हुआ ॥ १४ ॥ चाक्षुष मन्वन्तरके अन्तमें जब सारी त्रिलोकी
समुद्रमें डूब रही थी, तब उन्होंने मत्स्यके रूपमें दसवाँ
अवतार ग्रहण किया और पृथ्वीरूपी नौकापर बैठाकर अगले मन्वन्तरके अधिपति वैवस्वत
मनुकी रक्षा की ॥ १५ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से

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