॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम
स्कन्ध--आठवाँ अध्याय..(पोस्ट १२)
गर्भमें
परीक्षित्की रक्षा,
कुन्तीके द्वारा भगवान्की स्तुति और युधिष्ठिरका शोक
त्वयि
मेऽनन्यविषया मतिर्मधुपतेऽसकृत् ।
रतिं
उद्वहतात् अद्धा गङ्गेवौघं उदन्वति ॥ ४२ ॥
श्रीकृष्ण
कृष्णसख वृष्णि ऋषभावनिध्रुग्
राजन्यवंशदहन अनपवर्ग वीर्य ।
गोविन्द
गोद्विजसुरार्तिहरावतार
योगेश्वराखिलगुरो भगवन् नमस्ते ॥ ४३ ॥
श्रीकृष्ण
! जैसे गङ्गा की अखण्ड धारा समुद्रमें गिरती रहती है, वैसे ही मेरी बुद्धि किसी दूसरी ओर न जाकर आपसे ही निरन्तर प्रेम करती रहे
॥ ४२ ॥ श्रीकृष्ण ! अर्जुनके प्यारे सखा यदुवंशशिरोमणे ! आप पृथ्वीके भाररूप राजवेशधारी
दैत्योंको जलानेके लिये अग्निस्वरूप हैं। आपकी शक्ति अनन्त है। गोविन्द ! आपका यह
अवतार गौ, ब्राह्मण और देवताओंका दु:ख मिटानेके लिये ही है।
योगेश्वर ! चराचरके गुरु भगवन् ! मैं आपको नमस्कार करती हूँ ॥ ४३ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तक कोड 1535 से

No comments:
Post a Comment