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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.१८)
सप्ताहयज्ञ की विधि
कृष्णप्रियं
सकलकल्मषनाशनं च
मुक्त्येकहेतुमिह भक्तिविलासकारि
सन्तः
कथानकमिदं पिबतादरेण
लोके हि तीर्थपरिशीलनसेवया किम् ॥ ९८ ॥
स्वपुरुषमपि
वीक्ष्य पाशहस्तं
वदति यमः किल तस्य कर्णमूले ।
परिहर
भगवत्कथासु मत्तान्
प्रभुरहमन्युनृणां न वैष्णवानाम् ॥ ९९ ॥
सूत जी कहते हैं -संतजन
! आपलोग आदरपूर्वक इस कथामृतका पान कीजिये। यह श्रीकृष्णको अत्यन्त प्रिय,
सम्पूर्ण पापों का नाश करनेवाला, मुक्ति का
एकमात्र कारण और भक्ति को बढ़ानेवाला है। लोकमें अन्य कल्याणकारी साधनोंका विचार
करने और तीर्थों का सेवन करने से क्या होगा ॥ ९८ ॥ अपने दूतको हाथमें पाश लिये
देखकर यमराज उसके कानमें कहते हैं—‘देखो, जो भगवान्की कथा- वार्तामें मत्त हो रहे हों, उनसे
दूर रहना; मैं औरों को ही दण्ड देने की शक्ति रखता हूँ,
वैष्णवोंको नहीं’ ॥ ९९ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
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