Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य छठा अध्याय (पोस्ट.१७)


|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.१७)

सप्ताहयज्ञ की विधि

शुकेनोक्तं कदा राज्ञे गोकर्णेन कदा पुनः ।
सुरर्षये कदा ब्राह्मैः छिन्धि मे संशयं त्विमम् ॥ ९३ ॥

सूत उवाच –

आकृष्णनिर्गमात् त्रिंशत् वर्षाधिकगते कलौ ।
नवमीतो नभस्ये च कथारंभं शुकोऽकरोत् ॥ ९४ ॥
परीक्षित् श्रवणान्ते च कलौ वर्षशतद्वये ।
शुद्धे शुचौ नवम्यां च धेनुजोऽकथयत्कथाम् ॥ ९५ ॥
तस्मादपि कलौ प्राप्ते त्रिंशत् वर्षगते सति ।
ऊचुरूर्जे सिते पक्षे नवम्यां ब्रह्मणः सुताः ॥ ९६ ॥
इत्येत्तते समाख्यातं यत्पृष्टोऽहं त्वयानघ ।
कलौ भागवती वार्ता भवरोगविनाशिनी ॥ ९७ ॥

शौनकजीने पूछासूतजी ! शुकदेवजीने राजा परीक्षित्‌को, गोकर्ण ने धुन्धुकारी को और सनकादि ने नारदजीको किस-किस समय यह ग्रन्थ सुनाया थामेरा यह संशय दूर कीजिये ! ॥ ९३ ॥

सूतजीने कहाभगवान्‌ श्रीकृष्णके स्वधामगमनके बाद कलियुगके तीस वर्षसे कुछ अधिक बीत जानेपर भाद्रपद मासकी शुक्ला नवमीको शुकदेवजीने कथा आरम्भ की थी ॥ ९४ ॥ राजा परीक्षित्‌के कथा सुननेके बाद कलियुगके दो सौ वर्ष बीत जानेपर आषाढ़ मासकी शुक्ला नवमीको गोकर्णजीने यह कथा सुनाई थी ॥ ९५ ॥ इसके पीछे कलियुगके तीस वर्ष और निकल जानेपर कार्तिक शुक्ला नवमीसे सनकादिने कथा आरम्भ की थी ॥ ९६ ॥ निष्पाप शौनकजी ! आपने जो कुछ पूछा था, उसका उत्तर मैंने आपको दे दिया। इस कलियुगमें भागवतकी कथा भवरोगकी रामबाण औषध है ॥ ९७ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से


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