||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.१७)
सप्ताहयज्ञ की विधि
शुकेनोक्तं
कदा राज्ञे गोकर्णेन कदा पुनः ।
सुरर्षये
कदा ब्राह्मैः छिन्धि मे संशयं त्विमम् ॥ ९३ ॥
सूत
उवाच –
आकृष्णनिर्गमात्
त्रिंशत् वर्षाधिकगते कलौ ।
नवमीतो
नभस्ये च कथारंभं शुकोऽकरोत् ॥ ९४ ॥
परीक्षित्
श्रवणान्ते च कलौ वर्षशतद्वये ।
शुद्धे
शुचौ नवम्यां च धेनुजोऽकथयत्कथाम् ॥ ९५ ॥
तस्मादपि
कलौ प्राप्ते त्रिंशत् वर्षगते सति ।
ऊचुरूर्जे
सिते पक्षे नवम्यां ब्रह्मणः सुताः ॥ ९६ ॥
इत्येत्तते
समाख्यातं यत्पृष्टोऽहं त्वयानघ ।
कलौ
भागवती वार्ता भवरोगविनाशिनी ॥ ९७ ॥
शौनकजीने पूछा—सूतजी ! शुकदेवजीने राजा परीक्षित्को, गोकर्ण ने धुन्धुकारी को और सनकादि ने नारदजीको किस-किस समय यह ग्रन्थ सुनाया था—मेरा यह संशय दूर कीजिये ! ॥ ९३ ॥
सूतजीने कहा—भगवान् श्रीकृष्णके स्वधामगमनके बाद कलियुगके तीस वर्षसे कुछ अधिक बीत जानेपर भाद्रपद मासकी शुक्ला नवमीको शुकदेवजीने कथा आरम्भ की थी ॥ ९४ ॥ राजा परीक्षित्के कथा सुननेके बाद कलियुगके दो सौ वर्ष बीत जानेपर आषाढ़ मासकी शुक्ला नवमीको गोकर्णजीने यह कथा सुनाई थी ॥ ९५ ॥ इसके पीछे कलियुगके तीस वर्ष और निकल जानेपर कार्तिक शुक्ला नवमीसे सनकादिने कथा आरम्भ की थी ॥ ९६ ॥ निष्पाप शौनकजी ! आपने जो कुछ पूछा था, उसका उत्तर मैंने आपको दे दिया। इस कलियुगमें भागवतकी कथा भवरोगकी रामबाण औषध है ॥ ९७ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
No comments:
Post a Comment