|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा
अध्याय (पोस्ट.०७)
सप्ताहयज्ञ
की विधि
मलमूत्रजयार्थं
हि लघ्वाहारः सुखावहः ।
हविष्यान्नेन
कर्तव्यो हि, एकवारं कथार्थिना ॥ ४० ॥
उपोष्य
सप्तरात्रं वै शक्तिश्चेत् श्रुणुयात् तदा ।
घृतपानं पयःपानं
कृत्वा वै श्रृणुयात् सुखम् ॥ ४१ ॥
फलाहारेण वा
भाव्यं एकभुक्तेन वा पुनः ।
सुखसाध्यं भवेद्
यत्तु कर्तव्यं श्रवणाय तत् ॥ ४२ ॥
भोजनं तु वरं
मन्ये कथाश्रवणकारकम् ।
नोपवासो वरः
प्रोक्तः कथाविघ्नकरो यदि ॥ ४३ ॥
कथाके
समय मल-मूत्रके वेगको काबूमें रखनेके लिये अल्पाहार सुखकारी होता है; इसलिये श्रोता केवल एक ही समय हविष्यान्न भोजन करे ॥ ४० ॥ यदि शक्ति हो तो
सातों दिन निराहार रहकर कथा सुने अथवा केवल घी या दूध पीकर सुखपूर्वक श्रवण करे ॥
४१ ॥ अथवा फलाहार या एक समय ही भोजन करे। जिससे जैसा नियम सुभीते से सध सके, उसीको कथाश्रवण के लिये ग्रहण करे ॥ ४२ ॥ मैं तो उपवास की अपेक्षा भोजन
करना अच्छा समझता हूँ, यदि वह कथाश्रवण में सहायक हो।
यदि उपवास से श्रवण में बाधा पहुँचती हो तो वह किसी काम का नहीं ॥ ४३ ॥
हरिः ॐ तत्सत्
शेष आगामी पोस्ट
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गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तक
कोड 1535 से
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