Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य छठा अध्याय (पोस्ट.०७)


|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.०७)

सप्ताहयज्ञ की विधि

मलमूत्रजयार्थं हि लघ्वाहारः सुखावहः ।
हविष्यान्नेन कर्तव्यो हिएकवारं कथार्थिना ॥ ४० ॥
उपोष्य सप्तरात्रं वै शक्तिश्चेत् श्रुणुयात् तदा ।
घृतपानं पयःपानं कृत्वा वै श्रृणुयात् सुखम् ॥ ४१ ॥
फलाहारेण वा भाव्यं एकभुक्तेन वा पुनः ।
सुखसाध्यं भवेद् यत्तु कर्तव्यं श्रवणाय तत् ॥ ४२ ॥
भोजनं तु वरं मन्ये कथाश्रवणकारकम् ।
नोपवासो वरः प्रोक्तः कथाविघ्नकरो यदि ॥ ४३ ॥

कथाके समय मल-मूत्रके वेगको काबूमें रखनेके लिये अल्पाहार सुखकारी होता हैइसलिये श्रोता केवल एक ही समय हविष्यान्न भोजन करे ॥ ४० ॥ यदि शक्ति हो तो सातों दिन निराहार रहकर कथा सुने अथवा केवल घी या दूध पीकर सुखपूर्वक श्रवण करे ॥ ४१ ॥ अथवा फलाहार या एक समय ही भोजन करे। जिससे जैसा नियम सुभीते से सध सकेउसीको कथाश्रवण के लिये ग्रहण करे ॥ ४२ ॥ मैं तो उपवास की अपेक्षा भोजन करना अच्छा समझता हूँयदि वह कथाश्रवण में सहायक हो। यदि उपवास से श्रवण में बाधा पहुँचती हो तो वह किसी काम का नहीं ॥ ४३ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तक कोड 1535 से




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