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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.०८)
सप्ताहयज्ञ की विधि
सप्ताहव्रतिनां
पुंसां नियमान् श्रुणु नारद ।
विष्णुदीक्षाविहीनानां
नाधिकारः कथाश्रवे ॥ ४४ ॥
ब्रह्मचर्यमधः
सुप्तिः पत्रावल्यां च भोजनम् ।
कथासमाप्तौ
भुक्तिं च कुर्यात् नित्यं कथाव्रती ॥ ४५ ॥
द्विदलं
मधु तैलं च गरिष्ठान्नं तथैव च ।
भावदुष्टं
पर्युषितं जह्यात् नित्यं कथाव्रती ॥ ४६ ॥
कामं
क्रोधं मदं मानं मत्सरं लोभमेव च ।
दम्भ
मोहं तथा द्वेषं दूरयेच्च कथाव्रती ॥ ४७ ॥
वेदवैष्णवविप्राणां
गुरुगोव्रतिनां तथा ।
स्त्रीराजमहतां
निन्दां वर्जयेत् यः कथाव्रती ॥ ४८ ॥
रजस्वला
अन्त्यज म्लेच्छ पतित व्रात्यकैस्तथा ।
द्विजद्विड्
वेदबाह्यैश्च न वदेत् यः कथाव्रती ॥ ४९ ॥
नारदजी ! नियमसे सप्ताह सुननेवाले पुरुषोंके नियम सुनिये। विष्णुभक्तकी दीक्षासे रहित पुरुष कथाश्रवणका अधिकारी नहीं है ॥ ४४ ॥ जो पुरुष नियम से कथा सुने, उसे ब्रह्मचर्यसे रहना, भूमिपर सोना और नित्यप्रति कथा समाप्त होनेपर पत्तलमें भोजन करना चाहिये ॥ ४५ ॥ दाल, मधु, तेल, गरिष्ठ अन्न, भावदूषित पदार्थ और बासी अन्न—इनका उसे सर्वदा ही त्याग करना चाहिये ॥ ४६ ॥ काम, क्रोध, मद, मान, मत्सर, लोभ, दम्भ, मोह और द्वेषको तो अपने पास भी नहीं फटकने देना चाहिये ॥ ४७ ॥ वह वेद, वैष्णव, ब्राह्मण, गुरु, गोसेवक तथा स्त्री, राजा और महापुरुषोंकी निन्दासे भी बचे ॥ ४८ ॥ नियमसे कथा सुननेवाले पुरुषको रजस्वला स्त्री, अन्त्यज, म्लेच्छ, पतित, गायत्रीहीन द्विज, ब्राह्मणोंसे द्वेष करनेवाले तथा वेदको न माननेवाले पुरुषोंसे बात नहीं करनी चाहिये ॥ ४९ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तक कोड
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