||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.०६)
सप्ताहयज्ञ की विधि
तदग्रे
नियमः पश्चात् कर्तव्यः श्रेयसे मुदा ।
सप्तरात्रं
यथाशक्त्या धारणीयः स एव हि ॥ ३४ ॥
वरणं
पंचविप्राणां कथाभङ्गनिवृत्तये ।
कर्तव्यं
तैः हरेर्जाप्यं द्वादशाक्षरविद्यया ॥ ३५ ॥
ब्राह्मणान्
वैष्णवान् चान्यान् तथा कीर्तनकारिणः ।
नत्वा
संपूज्य दत्ताज्ञः स्वयं आसनमाविशेत् ॥ ३६ ॥
लोकवित्तधनागार
पुत्रचिन्तां व्युदस्य च ।
कथाचित्तः
शुद्धमतिः स लभेत्फलमुत्तमम् ॥ ३७ ॥
आसूर्योदयमारभ्य
सार्धत्रिप्रहरान्तकम् ।
वाचनीया
कथा सम्यक् धीरकण्ठं सुधीमता ॥ ३८ ॥
कथाविरामः
कर्तव्यो मध्याह्ने घटिकाद्वयं ।
तत्कथामनु
कार्यं वै कीर्तनं वैष्णवैस्तदा ॥ ३९ ॥
फिर अपने कल्याणके
लिये प्रसन्नतापूर्वक उसके सामने नियम ग्रहण करे और सात दिनोंतक यथाशक्ति उसका
पालन करे ॥ ३४ ॥ कथामें विघ्र न हो, इसके
लिये पाँच ब्राह्मणोंको और वरण करे; वे द्वादशाक्षर मन्त्रद्वारा
भगवान्के नामोंका जप करें ॥ ३५ ॥ फिर ब्राह्मण, अन्य
विष्णुभक्त एवं कीर्तन करनेवालोंको नमस्कार करके उनकी पूजा करे और उनकी आज्ञा पाकर
स्वयं भी आसनपर बैठ जाय ॥ ३६ ॥ जो पुरुष लोक, सम्पत्ति,
धन, घर और पुत्रादिकी चिन्ता छोडक़र
शुद्धचित्तसे केवल कथामें ही ध्यान रखता है, उसे इसके
श्रवणका उत्तम फल मिलता है ॥ ३७ ॥
बुद्धिमान् वक्ताको चाहिये कि सूर्योदयसे कथा आरम्भ करके साढ़े तीन पहरतक मध्यम स्वरसे अच्छी तरह कथा बाँचे ॥ ३८ ॥ दोपहरके समय दो घड़ीतक कथा बंद रखे। उस समय कथाके प्रसङ्गके अनुसार वैष्णवोंको भगवान्के गुणोंका कीर्तन करना चाहिये—व्यर्थ बातें नहीं करनी चाहिये ॥ ३९ ॥
बुद्धिमान् वक्ताको चाहिये कि सूर्योदयसे कथा आरम्भ करके साढ़े तीन पहरतक मध्यम स्वरसे अच्छी तरह कथा बाँचे ॥ ३८ ॥ दोपहरके समय दो घड़ीतक कथा बंद रखे। उस समय कथाके प्रसङ्गके अनुसार वैष्णवोंको भगवान्के गुणोंका कीर्तन करना चाहिये—व्यर्थ बातें नहीं करनी चाहिये ॥ ३९ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तक कोड
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