Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य छठा अध्याय (पोस्ट.०६)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.०६)

सप्ताहयज्ञ की विधि

तदग्रे नियमः पश्चात् कर्तव्यः श्रेयसे मुदा ।
सप्तरात्रं यथाशक्त्या धारणीयः स एव हि ॥ ३४ ॥
वरणं पंचविप्राणां कथाभङ्‌गनिवृत्तये ।
कर्तव्यं तैः हरेर्जाप्यं द्वादशाक्षरविद्यया ॥ ३५ ॥
ब्राह्मणान् वैष्णवान् चान्यान् तथा कीर्तनकारिणः ।
नत्वा संपूज्य दत्ताज्ञः स्वयं आसनमाविशेत् ॥ ३६ ॥
लोकवित्तधनागार पुत्रचिन्तां व्युदस्य च ।
कथाचित्तः शुद्धमतिः स लभेत्फलमुत्तमम् ॥ ३७ ॥
आसूर्योदयमारभ्य सार्धत्रिप्रहरान्तकम् ।
वाचनीया कथा सम्यक् धीरकण्ठं सुधीमता ॥ ३८ ॥
कथाविरामः कर्तव्यो मध्याह्ने घटिकाद्वयं ।
तत्कथामनु कार्यं वै कीर्तनं वैष्णवैस्तदा ॥ ३९ ॥

फिर अपने कल्याणके लिये प्रसन्नतापूर्वक उसके सामने नियम ग्रहण करे और सात दिनोंतक यथाशक्ति उसका पालन करे ॥ ३४ ॥ कथामें विघ्र न हो, इसके लिये पाँच ब्राह्मणोंको और वरण करे; वे द्वादशाक्षर मन्त्रद्वारा भगवान्‌के नामोंका जप करें ॥ ३५ ॥ फिर ब्राह्मण, अन्य विष्णुभक्त एवं कीर्तन करनेवालोंको नमस्कार करके उनकी पूजा करे और उनकी आज्ञा पाकर स्वयं भी आसनपर बैठ जाय ॥ ३६ ॥ जो पुरुष लोक, सम्पत्ति, धन, घर और पुत्रादिकी चिन्ता छोडक़र शुद्धचित्तसे केवल कथामें ही ध्यान रखता है, उसे इसके श्रवणका उत्तम फल मिलता है ॥ ३७ ॥
बुद्धिमान् वक्ताको चाहिये कि सूर्योदयसे कथा आरम्भ करके साढ़े तीन पहरतक मध्यम स्वरसे अच्छी तरह कथा बाँचे ॥ ३८ ॥ दोपहरके समय दो घड़ीतक कथा बंद रखे। उस समय कथाके प्रसङ्गके अनुसार वैष्णवोंको भगवान्‌के गुणोंका कीर्तन करना चाहियेव्यर्थ बातें नहीं करनी चाहिये ॥ ३९ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तक कोड 1535 से


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