|| ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय
(पोस्ट.०३)
धुन्धुकारी को
प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार
संहृत्य वित्तं
ता याताः कुलटा बहुभर्तृकाः ।
धुन्धुकारी
बभूवाथ महान् प्रेतः कुकर्मतः ॥ १६ ॥
वात्यारूपधरो
नित्यं धावन् दशदिशोन्तरम् ।
शीतातप
परिक्लिष्टो निराहारः पिपासितः ॥ १७ ॥
न लेभे शरणं
क्वापि हा दैवेति मुहुर्वदन् ।
कियत्कालेन
गोकर्णो मृतं लोकादबुध्यत ॥ १८ ॥
अनाथं तं
विदित्वैव गयाश्राद्धं अचीकरत् ।
यस्मिन् तीर्थे
तु संयाति तत्र श्राद्धं अवर्तयत् ॥ १९ ॥
एवं भ्रमन् स
गोकर्णः स्वपुरं समुपेयिवान् ।
रात्रौ गृहांगणे
स्वप्तुं आगतोऽलक्षितः परैः ॥ २० ॥
तत्र सुप्तं स
विज्ञाय धुन्धुकारी स्वबान्धवम् ।
निशीथे
दर्शयामास महारौद्रतरं वपुः ॥ २१ ॥
सकृन्मेषः
सकृद्धस्ती सकृच्च महिषोऽभवत् ।
सकृदिन्द्र
सकृच्चाग्निः पुनश्च पुरुषोऽभवत् ॥ २२ ॥
वैपरीत्यं इदं
दृष्ट्वा गोकर्णो धैर्यसंयुतः ।
अयं दुर्गतिकं
कोऽपि निश्चित्याथ तमब्रवीत् ॥ २३ ॥
गोकर्ण उवाच –
कस्त्वं उग्रतरो
रात्रौ कुतो यातो दशां इमाम् ।
किंवा प्रेतः
पिशाचो वा राक्षसोऽसीति शंस नः ॥ २४ ॥
वे कुलटाएँ
धुन्धुकारीकी सारी सम्पत्ति समेटकर वहाँसे चंपत हो गयीं; उनके ऐसे न जाने कितने पति थे। और धुन्धुकारी अपने कुकर्मोंके कारण भयंकर
प्रेत हुआ ॥ १६ ॥ वह बवंडरके रूपमें सर्वदा दसों दिशाओंमें भटकता रहता था तथा
शीत-घामसे सन्तप्त और भूख-प्याससे व्याकुल होनेके कारण ‘हा दैव ! हा दैव !’ चिल्लाता रहता था। परन्तु
उसे कहीं भी कोई आश्रय न मिला। कुछ काल बीतनेपर गोकर्णने भी लोगोंके मुखसे
धुन्धुकारीकी मृत्युका समाचार सुना ॥ १७-१८ ॥ तब उसे अनाथ समझकर उन्होंने उसका
गयाजीमें श्राद्ध किया; और भी जहाँ- जहाँ वे जाते थे, उसका श्राद्ध अवश्य करते थे ॥ १९ ॥ इस प्रकार घूमते-घूमते गोकर्णजी अपने
नगरमें आये और रात्रिके समय दूसरोंकी दृष्टिसे बचकर सीधे अपने घरके आँगनमें सोनेके
लिये पहुँचे ॥ २० ॥ वहाँ अपने भाईको सोया देख आधी रातके समय धुन्धुकारीने अपना
बड़ा विकट रूप दिखाया ॥ २१ ॥ वह कभी भेड़ा, कभी हाथी, कभी भैंसा, कभी इन्द्र और कभी अग्रिका रूप धारण
करता। अन्तमें वह मनुष्यके आकार- में प्रकट हुआ ॥ २२ ॥ ये विपरीत अवस्थाएँ देखकर
गोकर्णने निश्चय किया कि यह कोई दुर्गतिको प्राप्त हुआ जीव है। तब उन्होंने उससे
धैर्यपूर्वक पूछा ॥ २३ ॥ गोकर्णने कहा—तू कौन है ? रात्रिके समय ऐसे भयानक रूप क्यों दिखा रहा है ? तेरी यह दशा कैसे हुई ? हमें बता तो सही—तू प्रेत है, पिशाच है अथवा कोई राक्षस है ? ॥ २४ ॥
हरिः ॐ तत्सत्
शेष आगामी पोस्ट
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गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित
श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से

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