|| ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय
(पोस्ट.०२)
धुन्धुकारी को
प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार
बहुवित्तचयं
दृष्ट्वा रात्रौ नार्यो व्यचारयन् ।
चौर्यं करोत्यसौ
नित्यं अतो राजा ग्रहीष्यति ॥ ७ ॥
वित्तं हृत्वा
पुनश्चैनं मारयिष्यति निश्चितम् ।
अतोऽर्थगुप्तये
गूढं अस्माभिः किं न हन्यते ॥ ८ ॥
निहत्यैनं
गृहीत्वार्थं यास्यामो यत्र कुत्रचित् ।
इति ता निश्चयं
कृत्वा सुप्तं सम्बद्ध्य रश्मिभिः ॥ ९ ॥
पाशं कण्ठे
निधायास्य तन्मृत्युं उपचक्रमुः ।
त्वरितं न ममारासौ
चिन्तायुक्ताः तदाभवन् ॥ १० ॥
तप्तांगारसमूहांश्च
तन्मुखे हि विचिक्षिपुः ।
अग्निज्वालातिदुःखेन
व्याकुलो निधनं गतः ॥ ११ ॥
तं देहं
मुमुचुर्गर्ते प्रायः साहसिकाः स्त्रियः ।
न ज्ञातं तद्रहस्यं
तु केनापीदं तथैव च ॥ १२ ॥
लोकैः पृष्ट्वा
वदन्ति स्म दूरं यातः प्रियो हि नः ।
आगमिष्यति
वर्षेऽस्मिन् वित्तलोभविकर्षितः ॥ १३ ॥
स्त्रीणां नैव
तु विश्वासं दुष्टानां कारयेत् बुधः ।
विश्वासे यः
स्थितो मूढः स दुःखैः परिभूयते ॥ १४ ॥
सुधामयं वचो
यासां कामिनां रसवर्धनम् ।
हृदयं
क्षुरधाराभं प्रियः को नाम योषिताम् ॥ १५ ॥
(धुन्धुकारी
के)चोरी का बहुत माल देखकर रात्रिके समय स्त्रियोंने विचार किया कि ‘यह नित्य ही चोरी करता है, इसलिये इसे किसी दिन
अवश्य राजा पकड़ लेगा ॥ ७ ॥ राजा यह सारा धन छीनकर इसे निश्चय ही प्राणदण्ड देगा।
जब एक दिन इसे मरना ही है, तब हम ही धनकी रक्षाके लिये
गुप्तरूपसे इसको क्यों न मार डालें ॥ ८ ॥ इसे मारकर हम इसका माल-मता लेकर
जहाँ-कहीं चली जायँगी।’ ऐसा निश्चय कर उन्होंने सोये
हुए धुन्धुकारीको रस्सियोंसे कस दिया और उसके गलेमें फाँसी लगाकर उसे मारनेका
प्रयत्न किया। इससे जब वह जल्दी न मरा, तो उन्हें बड़ी
चिन्ता हुई ॥ ९-१० ॥ तब उन्होंने उसके मुखपर बहुत-से दहकते अँगारे डाले; इससे वह अग्नि की लपटोंसे बहुत छटपटाकर मर गया ॥ ११ ॥ उन्होंने उसके
शरीरको एक गड्ढेमें डालकर गाड़ दिया। सच है, स्त्रियाँ
प्राय: बड़ी दु:साहसी होती हैं। उनके इस कृत्यका किसीको भी पता न चला ॥ १२ ॥ लोगों
के पूछनेपर कह देती थीं कि ‘हमारे प्रियतम पैसेके लोभसे
अबकी बार कहीं दूर चले गये हैं, इसी वर्षके अंदर लौट
आयेंगे’ ॥ १३ ॥ बुद्धिमान् पुरुषको दुष्टा स्त्रियोंका
कभी विश्वास न करना चाहिये। जो मूर्ख इनका विश्वास करता है, उसे दुखी होना पड़ता है ॥ १४ ॥ इनकी वाणी तो अमृत के समान कामियों के
हृदयमें रस का सञ्चार करती है; किन्तु हृदय छूरे की धार
के समान तीक्ष्ण होता है। भला, इन स्त्रियों का कौन
प्यारा है ? ॥ १५ ॥
हरिः ॐ तत्सत्
शेष आगामी पोस्ट
में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से

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