|| ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय
(पोस्ट.०४)
धुन्धुकारी को
प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार
सूत उवाच -
एवं पृष्टस्तदा
तेन रुरोदोच्चैः पुनः पुनः ।
अशक्तो
वचनोच्चारे संज्ञामात्रं चकार ह ॥ २५ ॥
ततोऽञ्जलौ जलं
कृत्वा गोकर्णस्तमुदैरयत् ।
तत्सेकहतपापोऽसौ
प्रवक्तुं उपचक्रमे ॥ २६ ॥
प्रेत उवाच –
अहं भ्राता
त्वदीयोऽस्मि धुन्धुकारीरि नामतः ।
स्वकीयेनैव
दोषेण ब्रह्मत्वं नाशितं मया ॥ २७ ॥
कर्मणो नास्ति संख्या
मे महाज्ञाने विवर्तिनः ।
लोकानां हिंसकः
सोऽहं स्त्रीभिर्दुःखेन मारितः ॥ २८ ॥
अतः प्रेतत्वं
आपन्नो दुर्दशां च वहाम्यहम् ।
वाताहारेण
जीवामि दैवाधीनफलोदयात् ॥ २९ ॥
अहो बन्धो
कृपासिन्धो भ्रातर्मामाशु मोचय ।
गोकर्णो वचनं
श्रुत्वा तस्मै वाक्यं अथाब्रवीत् ॥ ३० ॥
गोकर्ण उवाच –
त्वदर्थं तु
गयापिण्डो मया दत्तो विधानतः ।
तत्कथं नैव
मुक्तोऽसि ममाश्चर्यं इदं महत् ॥ ३१ ॥
गयाश्राद्धान्न
मुक्तिश्चेत् उपायो नापरस्त्विह ।
किं विधेयं मया
प्रेत तत्त्वं वद सविस्तरम् ॥ ३२ ॥
सूतजी कहते हैं—गोकर्ण के इस प्रकार पूछनेपर वह(धुंधुकारी) बार-बार जोर-जोरसे रोने लगा।
उसमें बोलनेकी शक्ति नहीं थी, इसलिये उसने केवल
संकेतमात्र किया ॥ २५ ॥ तब गोकर्णने अञ्जलिमें जल लेकर उसे अभिमंत्रित करके उसपर
छिडक़ा। इससे उसके पापोंका कुछ शमन हुआ और वह इस प्रकार कहने लगा ॥ २६ ॥—‘मैं तुम्हारा भाई हूँ। मेरा नाम है धुन्धुकारी। मैंने अपने ही दोषसे अपना
ब्राह्मणत्व नष्ट कर दिया ॥ २७ ॥ मेरे कुकर्मोंकी गिनती नहीं की जा सकती। मैं तो
महान् अज्ञानमें चक्कर काट रहा था। इसीसे मैंने लोगोंकी बड़ी हिंसा की। अन्तमें
कुलटा स्त्रियोंने मुझे तड़पा-तड़पाकर मार डाला ॥ २८ ॥ इसीसे अब प्रेत-योनिमें
पडक़र यह दुर्दशा भोग रहा हूँ। अब दैववश कर्मफलका उदय होनेसे मैं केवल वायुभक्षण
करके जी रहा हूँ ॥ २९ ॥ भाई ! तुम दयाके समुद्र हो; अब
किसी प्रकार जल्दी ही मुझे इस योनिसे छुड़ाओ।’ गोकर्णने
धुन्धुकारीकी सारी बातें सुनीं और तब उससे बोले ॥ ३० ॥ गोकर्णने कहा—भाई ! मुझे इस बातका बड़ा आश्चर्य है—मैंने तुम्हारे
लिये विधिपूर्वक गयाजीमें पिण्डदान किया, फिर भी तुम
प्रेतयोनिसे मुक्त कैसे नहीं हुए ? ॥ ३१ ॥ यदि
गया-श्राद्ध- से भी तुम्हारी मुक्ति नहीं हुई, तब इसका
और कोई उपाय ही नहीं है। अच्छा, तुम सब बात खोलकर कहो—मुझे अब क्या करना चाहिये ? ॥ ३२ ॥
हरिः ॐ तत्सत्
शेष आगामी पोस्ट
में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित
श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से

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