Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.०४)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.०४)

धुन्धुकारी को प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार

सूत उवाच -
एवं पृष्टस्तदा तेन रुरोदोच्चैः पुनः पुनः ।
अशक्तो वचनोच्चारे संज्ञामात्रं चकार ह ॥ २५ ॥
ततोऽञ्जलौ जलं कृत्वा गोकर्णस्तमुदैरयत् ।
तत्सेकहतपापोऽसौ प्रवक्तुं उपचक्रमे ॥ २६ ॥

प्रेत उवाच
अहं भ्राता त्वदीयोऽस्मि धुन्धुकारीरि नामतः ।
स्वकीयेनैव दोषेण ब्रह्मत्वं नाशितं मया ॥ २७ ॥
कर्मणो नास्ति संख्या मे महाज्ञाने विवर्तिनः ।
लोकानां हिंसकः सोऽहं स्त्रीभिर्दुःखेन मारितः ॥ २८ ॥
अतः प्रेतत्वं आपन्नो दुर्दशां च वहाम्यहम् ।
वाताहारेण जीवामि दैवाधीनफलोदयात् ॥ २९ ॥
अहो बन्धो कृपासिन्धो भ्रातर्मामाशु मोचय ।
गोकर्णो वचनं श्रुत्वा तस्मै वाक्यं अथाब्रवीत् ॥ ३० ॥

गोकर्ण उवाच
त्वदर्थं तु गयापिण्डो मया दत्तो विधानतः ।
तत्कथं नैव मुक्तोऽसि ममाश्चर्यं इदं महत् ॥ ३१ ॥
गयाश्राद्धान्न मुक्तिश्चेत् उपायो नापरस्त्विह ।
किं विधेयं मया प्रेत तत्त्वं वद सविस्तरम् ॥ ३२ ॥

सूतजी कहते हैंगोकर्ण के इस प्रकार पूछनेपर वह(धुंधुकारी) बार-बार जोर-जोरसे रोने लगा। उसमें बोलनेकी शक्ति नहीं थीइसलिये उसने केवल संकेतमात्र किया ॥ २५ ॥ तब गोकर्णने अञ्जलिमें जल लेकर उसे अभिमंत्रित करके उसपर छिडक़ा। इससे उसके पापोंका कुछ शमन हुआ और वह इस प्रकार कहने लगा ॥ २६ ॥—‘मैं तुम्हारा भाई हूँ। मेरा नाम है धुन्धुकारी। मैंने अपने ही दोषसे अपना ब्राह्मणत्व नष्ट कर दिया ॥ २७ ॥ मेरे कुकर्मोंकी गिनती नहीं की जा सकती। मैं तो महान् अज्ञानमें चक्कर काट रहा था। इसीसे मैंने लोगोंकी बड़ी हिंसा की। अन्तमें कुलटा स्त्रियोंने मुझे तड़पा-तड़पाकर मार डाला ॥ २८ ॥ इसीसे अब प्रेत-योनिमें पडक़र यह दुर्दशा भोग रहा हूँ। अब दैववश कर्मफलका उदय होनेसे मैं केवल वायुभक्षण करके जी रहा हूँ ॥ २९ ॥ भाई ! तुम दयाके समुद्र होअब किसी प्रकार जल्दी ही मुझे इस योनिसे छुड़ाओ।’ गोकर्णने धुन्धुकारीकी सारी बातें सुनीं और तब उससे बोले ॥ ३० ॥ गोकर्णने कहाभाई ! मुझे इस बातका बड़ा आश्चर्य हैमैंने तुम्हारे लिये विधिपूर्वक गयाजीमें पिण्डदान कियाफिर भी तुम प्रेतयोनिसे मुक्त कैसे नहीं हुए ? ॥ ३१ ॥ यदि गया-श्राद्ध- से भी तुम्हारी मुक्ति नहीं हुईतब इसका और कोई उपाय ही नहीं है। अच्छातुम सब बात खोलकर कहोमुझे अब क्या करना चाहिये ? ॥ ३२ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से




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