||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
दूसरा
अध्याय (पोस्ट.०५)
भक्तिका
दु:ख दूर करनेके लिये नारदजीका उद्योग
सूत
उवाच –
तस्या
वचः समाकर्ण्य कारुण्यं नारदो गतः ।
तयोर्बोधनमारेभे
कराग्रेण विमर्दयन् ॥ २५ ॥
मुखं
संयोज्य कर्णान्ते शब्दमुच्चैः समुच्चरन् ।
ज्ञान
प्रबुध्यतां शीघ्रं रे वैराग्य प्रबुध्यताम् ॥ २६ ॥
वेदवेदान्तघोषैश्च
गीतापाठैर्मुहुर्मुहुः ।
बोध्यमानौ
तदा तेन कथंचित् चोत्थितौ बलात् ॥ २७ ॥
नेत्रैः
अनवलोकन्तौ जृम्भन्तौ सालसावुभौ ।
बकवत्पलितौ
प्रायः शुष्ककाष्ठसमाङ्गकौ ॥ २८ ॥
क्षुत्क्षामौ
तौ निरीक्ष्यैव पुनः स्वापपरायणौ ।
ऋषिश्चिन्तापरो
जातः किं विधेयं मयेति च ॥ २९ ॥
अहो
निद्रा कथं याति वृद्धत्वं च महत्तरम् ।
चिन्तयन्
इति गोविन्दं स्मारयामास भार्गव ॥ ३० ॥
व्योमवाणी
तदैवाभूत् मा ऋषे खिद्यतामिति ।
उद्यमः
सफलस्तेऽयं भविष्यति न संशयः ॥ ३१ ॥
एतदर्थं
तु सत्कर्म सुरर्षे त्वं समाचर ।
तत्ते
कर्माभिधास्यन्ति साधवः साधुभूषणाः ॥ ३२ ॥
सत्कर्मणि
कृते तस्मिन् सनिद्रा वृद्धतानयोः ।
गमिष्यति
क्षणाद्भक्तिः सर्वतः प्रसरिष्यति ॥ ३३ ॥
इत्याकाशवचः
स्पष्टं तत्सर्वैरपि विश्रुतम् ।
नारदो
विस्मयं लेभे नेदं ज्ञातमिति ब्रुवन् ॥ ३४ ॥
सूतजी
कहते हैं—भक्तिके ये वचन सुनकर नारदजीको बड़ी करुणा आयी और वे उन्हें हाथसे
हिलाडुलाकर जगाने लगे ॥ २५ ॥ फिर उनके कानके पास मुँह लगाकर जोरसे कहा, ‘ओ ज्ञान ! जल्दी जग पड़ो; ओ वैराग्य ! जल्दी जग
पड़ो।’ ॥ २६ ॥ फिर उन्होंने वेदध्वनि, वेदान्तघोष
और बार-बार गीतापाठ करके उन्हें जगाया; इससे वे जैसे-तैसे
बहुत जोर लगाकर उठे ॥ २७ ॥ किन्तु आलस्यके कारण वे दोनों जँभाई लेते रहे, नेत्र उघाडक़र देख भी नहीं सके। उनके बाल बगुलोंकी तरह सफेद हो गये थे,
उनके अङ्ग प्राय: सूखे काठके समान निस्तेज और कठोर हो गये थे ॥ २८ ॥
इस प्रकार भूख-प्यासके मारे अत्यन्त दुर्बल होनेके कारण उन्हें फिर सोते देख
नारदजीको बड़ी चिन्ता हुई और वे सोचने लगे, ‘अब मुझे क्या
करना चाहिये ? ॥ २९ ॥ इनकी यह नींद और इससे भी बढक़र इनकी
वृद्धावस्था कैसे दूर हो ?’ शौनकजी ! इस प्रकार चिन्ता
करते-करते वे भगवान्का स्मरण करने लगे ॥ ३० ॥ उसी समय यह आकाशवाणी हुई कि ‘मुने ! खेद मत करो, तुम्हारा यह उद्योग नि:संदेह सफल
होगा ॥ ३१ ॥ देवर्षे ! इसके लिये तुम एक सत्कर्म करो, वह
कर्म तुम्हें संतशिरोमणि महानुभाव बतायेंगे ॥ ३२ ॥ उस सत्कर्मका अनुष्ठान करते ही
क्षणभरमें उनकी नींद और वृद्धावस्था चली जायँगी तथा सर्वत्र भक्तिका प्रसार होगा’
॥ ३३ ॥ यह आकाशवाणी वहाँ सभीको साफ-साफ सुनायी दी। इससे नारदजीको
बड़ा विस्मय हुआ और वे कहने लगे, ‘मुझे तो इसका कुछ आशय समझमें
नहीं आया’ ॥ ३४ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से

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