Friday, December 8, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य दूसरा अध्याय (पोस्ट.०५)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
दूसरा अध्याय (पोस्ट.०५)

भक्तिका दु:ख दूर करनेके लिये नारदजीका उद्योग

सूत उवाच –

तस्या वचः समाकर्ण्य कारुण्यं नारदो गतः ।
तयोर्बोधनमारेभे कराग्रेण विमर्दयन् ॥ २५ ॥
मुखं संयोज्य कर्णान्ते शब्दमुच्चैः समुच्चरन् ।
ज्ञान प्रबुध्यतां शीघ्रं रे वैराग्य प्रबुध्यताम् ॥ २६ ॥
वेदवेदान्तघोषैश्च गीतापाठैर्मुहुर्मुहुः ।
बोध्यमानौ तदा तेन कथंचित् चोत्थितौ बलात् ॥ २७ ॥
नेत्रैः अनवलोकन्तौ जृम्भन्तौ सालसावुभौ ।
बकवत्पलितौ प्रायः शुष्ककाष्ठसमाङ्‍गकौ ॥ २८ ॥
क्षुत्क्षामौ तौ निरीक्ष्यैव पुनः स्वापपरायणौ ।
ऋषिश्चिन्तापरो जातः किं विधेयं मयेति च ॥ २९ ॥
अहो निद्रा कथं याति वृद्धत्वं च महत्तरम् ।
चिन्तयन् इति गोविन्दं स्मारयामास भार्गव ॥ ३० ॥
व्योमवाणी तदैवाभूत् मा ऋषे खिद्यतामिति ।
उद्यमः सफलस्तेऽयं भविष्यति न संशयः ॥ ३१ ॥
एतदर्थं तु सत्कर्म सुरर्षे त्वं समाचर ।
तत्ते कर्माभिधास्यन्ति साधवः साधुभूषणाः ॥ ३२ ॥
सत्कर्मणि कृते तस्मिन् सनिद्रा वृद्धतानयोः ।
गमिष्यति क्षणाद्‌भक्तिः सर्वतः प्रसरिष्यति ॥ ३३ ॥
इत्याकाशवचः स्पष्टं तत्सर्वैरपि विश्रुतम् ।
नारदो विस्मयं लेभे नेदं ज्ञातमिति ब्रुवन् ॥ ३४ ॥

सूतजी कहते हैंभक्तिके ये वचन सुनकर नारदजीको बड़ी करुणा आयी और वे उन्हें हाथसे हिलाडुलाकर जगाने लगे ॥ २५ ॥ फिर उनके कानके पास मुँह लगाकर जोरसे कहा, ‘ओ ज्ञान ! जल्दी जग पड़ो; ओ वैराग्य ! जल्दी जग पड़ो।॥ २६ ॥ फिर उन्होंने वेदध्वनि, वेदान्तघोष और बार-बार गीतापाठ करके उन्हें जगाया; इससे वे जैसे-तैसे बहुत जोर लगाकर उठे ॥ २७ ॥ किन्तु आलस्यके कारण वे दोनों जँभाई लेते रहे, नेत्र उघाडक़र देख भी नहीं सके। उनके बाल बगुलोंकी तरह सफेद हो गये थे, उनके अङ्ग प्राय: सूखे काठके समान निस्तेज और कठोर हो गये थे ॥ २८ ॥ इस प्रकार भूख-प्यासके मारे अत्यन्त दुर्बल होनेके कारण उन्हें फिर सोते देख नारदजीको बड़ी चिन्ता हुई और वे सोचने लगे, ‘अब मुझे क्या करना चाहिये ? ॥ २९ ॥ इनकी यह नींद और इससे भी बढक़र इनकी वृद्धावस्था कैसे दूर हो ?’ शौनकजी ! इस प्रकार चिन्ता करते-करते वे भगवान्‌का स्मरण करने लगे ॥ ३० ॥ उसी समय यह आकाशवाणी हुई कि मुने ! खेद मत करो, तुम्हारा यह उद्योग नि:संदेह सफल होगा ॥ ३१ ॥ देवर्षे ! इसके लिये तुम एक सत्कर्म करो, वह कर्म तुम्हें संतशिरोमणि महानुभाव बतायेंगे ॥ ३२ ॥ उस सत्कर्मका अनुष्ठान करते ही क्षणभरमें उनकी नींद और वृद्धावस्था चली जायँगी तथा सर्वत्र भक्तिका प्रसार होगा॥ ३३ ॥ यह आकाशवाणी वहाँ सभीको साफ-साफ सुनायी दी। इससे नारदजीको बड़ा विस्मय हुआ और वे कहने लगे, ‘मुझे तो इसका कुछ आशय समझमें नहीं आया॥ ३४ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से 


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