||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
चौथा
अध्याय (पोस्ट.०४)
गोकर्णोपाख्यान
प्रारम्भ
अत्र
ते कीर्तयिष्याम इतिहासं पुरातनम् ।
यस्य
श्रवणमात्रेण पापहानिः प्रजायते ॥ १५ ॥
तुंगभद्रातटे
पूर्वं अभूत् पत्तनमुत्तमम् ।
यत्र
वर्णाः स्वधर्मेण सत्यसत्कर्मतत्पराः ॥ १६ ॥
आत्मदेवः
पुरे तस्मिन् सर्ववेद विशारदः ।
श्रौतस्मार्तेषु
निष्णातो द्वितीय इव भास्करः ॥ १७ ॥
भिक्षुको
वित्तवान् लोके तत्प्रिया धुन्धुली स्मृता ।
स्ववाक्यस्थापिका
नित्यं सुन्दरी सुकुलोद्भवा ॥ १८ ॥
लोकवार्तारता
क्रूरा प्रायशो बहुजल्पिका ।
शूरा
च गृहकृत्येषु कृपणा कलहप्रिया ॥ १९ ॥
एवं
निवसतोः प्रेम्णा दंपत्यो रममाणयोः ।
अर्थाः
कामास्तयोरासन् न सुखाय गृहादिकम् ॥ २० ॥
पश्चात्
धर्माः समारब्धाः ताभ्यां संतानहेतवे ।
गोभूहिरण्यवासांसि
दीनेभ्यो यच्छतः सदा ॥ २१ ॥
धनार्धं
धर्ममार्गेण ताभ्यां नीतं तथापि च ।
न
पुत्रो नापि वा पुत्री ततश्चिन्तातुरो भृशम् ॥ २२ ॥
(सनकादि
कहते हैं) नारदजी ! अब हम तुम्हें इस विषयमें एक प्राचीन इतिहास सुनाते हैं, उसके सुननेसे ही सब पाप नष्ट हो जाते हैं ॥ १५ ॥ पूर्वकालमें तुङ्गभद्रा
नदीके तटपर एक अनुपम नगर बसा हुआ था। वहाँ सभी वर्णोंके लोग अपने-अपने धर्मोंका
आचरण करते हुए सत्य और सत्कर्मोंमें तत्पर रहते थे ॥ १६ ॥ उस नगरमें समस्त वेदोंका
विशेषज्ञ और श्रौत-स्मार्त कर्मोंमें निपुण एक आत्मदेव नामक ब्राह्मण रहता था,
वह साक्षात् दूसरे सूर्यके समान तेजस्वी था ॥ १७ ॥ वह धनी होनेपर भी
भिक्षाजीवी था। उसकी प्यारी पत्नी धुन्धुली कुलीन एवं सुन्दरी होनेपर भी सदा अपनी
बातपर अड़ जानेवाली थी ॥ १८ ॥ उसे लोगोंकी बात करनेमें सुख मिलता था। स्वभाव था
क्रूर। प्राय: कुछ- न-कुछ बकवाद करती रहती थी। गृहकार्यमें निपुण थी, कृपण थी, और थी झगड़ालू भी ॥ १९ ॥ इस प्रकार
ब्राह्मण-दम्पति प्रेमसे अपने घरमें रहते और विहार करते थे। उनके पास अर्थ और भोग-
विलासकी सामग्री बहुत थी। घर-द्वार भी सुन्दर थे, परन्तु
उससे उन्हें सुख नहीं था ॥ २० ॥ जब अवस्था बहुत ढल गयी, तब
उन्होंने सन्तानके लिये तरह-तरहके पुण्यकर्म आरम्भ किये और वे दीन-दु:खियोंको गौ,
पृथ्वी, सुवर्ण और वस्त्रादि दान करने लगे ॥
२१ ॥ इस प्रकार धर्ममार्गमें उन्होंने अपना आधा धन समाप्त कर दिया, तो भी उन्हें पुत्र या पुत्री किसीका भी मुख देखने को न मिला। इसलिये अब
वह ब्राह्मण बहुत ही चिन्तातुर रहने लगा ॥ २२ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित
श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से

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