Monday, December 11, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य चौथा अध्याय (पोस्ट.०३)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
चौथा अध्याय (पोस्ट.०३)

गोकर्णोपाख्यान प्रारम्भ

कुमारा ऊचुः –

ये मानवाः पापकृतस्तु सर्वदा
     सदा दुराचाररता विमार्गगाः ।
क्रोधाग्निदग्धाः कुटिलाश्च कामिनः
     सप्ताहयज्ञेन कलौ पुनन्ति ते ॥ ११ ॥
सत्यन हीना पितृमातृदूषकाः
     तृष्णाकुलाचाश्रमधर्मवर्जिताः ।
ये दाम्भिका मत्सरिणोऽपि हिंसकाः
     सप्ताहयज्ञेन कलौ पुनन्ति ते ॥ १२ ॥
पञ्चोग्रपापात् छलछद्मकारिणः
     क्रूराः पिशाचा इव निर्दयाश्च ये ।
ब्रह्मस्वपुष्टा व्यभिचारकारिणः
     सप्ताहयज्ञेन कलौ पुनन्ति ते ॥ १३ ॥
कायेन वाचा मनसापि पातकं
     नित्यं प्रकुर्वन्ति शठा हठेन ये ।
परस्वपुष्टा मलिना दुराशयाः
     सप्ताहयज्ञेन कलौ पुनन्ति ते ॥ १४ ॥

सनकादिने कहाजो लोग सदा तरह-तरह के पाप किया करते हैं, निरन्तर दुराचार में ही तत्पर रहते हैं और उलटे मार्गों से चलते हैं तथा जो क्रोधाग्नि से जलते रहनेवाले, कुटिल और कामपरायण हैं, वे सभी इस कलियुग में सप्ताहयज्ञ से पवित्र हो जाते हैं ॥ ११ ॥ जो सत्यसे च्युत, माता-पिता की निन्दा करनेवाले, तृष्णा के मारे व्याकुल, आश्रमधर्म से रहित, दम्भी, दूसरों की उन्नति देखकर कुढऩे- वाले और दूसरों को दु:ख देनेवाले हैं, वे भी कलियुग में सप्ताहयज्ञ से पवित्र हो जाते हैं ॥ १२ ॥ जो मदिरापान, ब्रह्महत्या, सुवर्णकी चोरी, गुरुस्त्रीगमन और विश्वासघातये पाँच महापाप करनेवाले, छल-छद्मपरायण, क्रूर, पिशाचोंके समान निर्दयी, ब्राह्मणोंके धनसे पुष्ट होनेवाले और व्यभिचारी हैं, वे भी कलियुगमें सप्ताहयज्ञसे पवित्र हो जाते हैं ॥ १३ ॥ जो दुष्ट आग्रहपूर्वक सर्वदा मन, वाणी या शरीरसे पाप करते रहते हैं, दूसरेके धनसे ही पुष्ट होते हैं तथा मलिन मन और दुष्ट हृदयवाले हैं, वे भी कलियुगमें सप्ताहयज्ञसे पवित्र हो जाते हैं ॥ १४ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से


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