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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.०२)
सप्ताहयज्ञ की विधि
देशे देशे
विरक्ता ये वैष्णवाः कीर्तनोत्सुकाः ।
तेष्वेव पत्रं
प्रेष्यं च तल्लेखनं इतीरितम् ॥ ७ ॥
सतां समाजो
भविता सप्तरात्रं सुदुर्लभः ।
अपूर्वरसरूपैव
कथा चात्र भविष्यति ॥ ८ ॥
श्रीमद्भागवत
पीयुष पानाय रसलम्पटाः ।
भवन्तश्च तथा
शीघ्रं आयात प्रेमतत्पराः ॥ ९ ॥
नावकाशः
कदाचित् चेत् दिनमात्रं तथापि तु ।
सर्वथाऽऽगमनं
कार्यं क्षणोऽत्रैव सुदुर्लभः ॥ १० ॥
एवमाकारणं
तेषां कर्तव्यं विनयेन च ।
आगन्तुकानां सर्वेषां
वासस्थानानि कल्पयेत् ॥११ ॥
देश-देशमें जो विरक्त
वैष्णव और हरिकीर्तनके प्रेमी हों, उनके
पास निमन्त्रणपत्र अवश्य भेजे। उसे लिखनेकी विधि इस प्रकार बतायी गयी है ॥ ७ ॥ ‘महानुभावो ! यहाँ सात दिनतक सत्पुरुषोंका बड़ा दुर्लभ समागम रहेगा और
अपूर्व रसमयी श्रीमद्भागवतकी कथा होगी ॥ ८ ॥ आपलोग भगवद्रसके रसिक हैं, अत: श्रीभागवतामृतका पान करनेके लिये प्रेमपूर्वक शीघ्र ही पधारनेकी कृपा
करें ॥ ९ ॥ यदि आपको विशेष अवकाश न हो, तो भी एक दिनके लिये
तो अवश्य ही कृपा करनी चाहिये; क्योंकि यहाँका तो एक क्षण भी
अत्यन्त दुर्लभ है।’ ॥ १० ॥ इस प्रकार विनयपूर्वक उन्हें निमंत्रित
करे और जो लोग आयें, उनके लिये यथोचित निवासस्थानका प्रबन्ध
करे ॥ ११ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
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