|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा
अध्याय (पोस्ट.०१)
सप्ताहयज्ञ
की विधि
कुमारा
ऊचुः –
अथ
ते संप्रवक्ष्यामः सप्ताहश्रवणे विधिम् ।
सहायैर्वसुभिश्चैव
प्रायः साध्यो विधिः स्मृतः ॥ १ ॥
दैवज्ञं
तु समाहूय मुहूर्तं पृच्छ्य यत्नतः ।
विवाहे
यादृशं वित्तं तादृशं परिकल्पयेत् ॥ २ ॥
नभस्य
आश्विनोर्जौ च मार्गशीर्षः शुचिर्नभाः ।
एते
मासाः कथारम्भे श्रोतॄणां मोक्षसूचकाः ॥ ३ ॥
मासानां
विप्र हेयानि तानि त्याज्यानि सर्वथा ।
सहायाश्चेतरे
तत्र कर्तव्याः सोद्यमाश्च ये ॥ ४ ॥
देशे
देशे तथा सेयं वार्ता प्रेष्या प्रयत्नतः ।
भविष्यति
कथा चात्र आगन्तव्यं कुटुम्बिभिः ॥ ५ ॥
दूरे
हरिकथाः केचित् दूरे चाच्युतकीर्तनाः ।
स्त्रियः
शूद्रादयो ये च तेषां बोधो यतो भवेत् ॥ ६ ॥
श्रीसनकादि
कहते हैं—नारदजी ! अब हम आपको सप्ताहश्रवणकी विधि बताते हैं।
यह विधि प्राय: लोगोंकी सहायता और धनसे साध्य कही गयी है ॥ १ ॥ पहले तो यत्नपूर्वक
ज्योतिषीको बुलाकर मुहूर्त पूछना चाहिये तथा विवाहके लिये जिस प्रकार धनका प्रबन्ध
किया जाता है उस प्रकार ही धनकी व्यवस्था इसके लिये करनी चाहिये ॥ २ ॥ कथा आरम्भ
करनेमें भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, आषाढ़ और श्रावण—ये छ: महीने श्रोताओंके लिये मोक्षकी प्राप्तिके कारण हैं ॥ ३ ॥ देवर्षे !
इन महीनोंमें भी भद्रा-व्यतीपात आदि कुयोगोंको सर्वथा त्याग देना चाहिये। तथा
दूसरे लोग जो उत्साही हों, उन्हें अपना सहायक बना लेना
चाहिये ॥ ४ ॥ फिर प्रयत्न करके देश-देशान्तरोंमें यह संवाद भेजना चाहिये कि यहाँ
कथा होगी, सब लोगोंको सपरिवार पधारना चाहिये ॥ ५ ॥
स्त्री और शूद्रादि भगवत्कथा एवं संकीर्तनसे दूर पड़ गये हैं। उनको भी सूचना हो
जाय, ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये ॥ ६ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
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