Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य छठा अध्याय (पोस्ट.०१)




|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.०१)

सप्ताहयज्ञ की विधि

कुमारा ऊचुः –
अथ ते संप्रवक्ष्यामः सप्ताहश्रवणे विधिम् ।
सहायैर्वसुभिश्चैव प्रायः साध्यो विधिः स्मृतः ॥ १ ॥
दैवज्ञं तु समाहूय मुहूर्तं पृच्छ्य यत्‍नतः ।
विवाहे यादृशं वित्तं तादृशं परिकल्पयेत् ॥ २ ॥
नभस्य आश्विनोर्जौ च मार्गशीर्षः शुचिर्नभाः ।
एते मासाः कथारम्भे श्रोतॄणां मोक्षसूचकाः ॥ ३ ॥
मासानां विप्र हेयानि तानि त्याज्यानि सर्वथा ।
सहायाश्चेतरे तत्र कर्तव्याः सोद्यमाश्च ये ॥ ४ ॥
देशे देशे तथा सेयं वार्ता प्रेष्या प्रयत्‍नतः ।
भविष्यति कथा चात्र आगन्तव्यं कुटुम्बिभिः ॥ ५ ॥
दूरे हरिकथाः केचित् दूरे चाच्युतकीर्तनाः ।
स्त्रियः शूद्रादयो ये च तेषां बोधो यतो भवेत् ॥ ६ ॥

श्रीसनकादि कहते हैंनारदजी ! अब हम आपको सप्ताहश्रवणकी विधि बताते हैं। यह विधि प्राय: लोगोंकी सहायता और धनसे साध्य कही गयी है ॥ १ ॥ पहले तो यत्नपूर्वक ज्योतिषीको बुलाकर मुहूर्त पूछना चाहिये तथा विवाहके लिये जिस प्रकार धनका प्रबन्ध किया जाता है उस प्रकार ही धनकी व्यवस्था इसके लिये करनी चाहिये ॥ २ ॥ कथा आरम्भ करनेमें भाद्रपदआश्विनकार्तिकमार्गशीर्षआषाढ़ और श्रावणये छ: महीने श्रोताओंके लिये मोक्षकी प्राप्तिके कारण हैं ॥ ३ ॥ देवर्षे ! इन महीनोंमें भी भद्रा-व्यतीपात आदि कुयोगोंको सर्वथा त्याग देना चाहिये। तथा दूसरे लोग जो उत्साही होंउन्हें अपना सहायक बना लेना चाहिये ॥ ४ ॥ फिर प्रयत्न करके देश-देशान्तरोंमें यह संवाद भेजना चाहिये कि यहाँ कथा होगीसब लोगोंको सपरिवार पधारना चाहिये ॥ ५ ॥ स्त्री और शूद्रादि भगवत्कथा एवं संकीर्तनसे दूर पड़ गये हैं। उनको भी सूचना हो जायऐसा प्रबन्ध करना चाहिये ॥ ६ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्ट संस्करण) पुस्तककोड 1535 से                                                




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