Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य छठा अध्याय (पोस्ट.०३)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
छठा अध्याय (पोस्ट.०३)

सप्ताहयज्ञ की विधि

तीर्थे वापि वने वापि गृहे वा श्रवणं मतम् ।
विशाला वसुधा यत्र कर्तव्यं तत्कथास्थलम् ॥ १२ ॥
शोधनं मार्जनं भूमेः लेपनं धातुमण्डनम् ।
गृहोपस्करमुद्ध्रुत्य गृहकोणे निवेशयेत् ॥ १३ ॥
अर्वाक् पंचाहतो यत्‍नात् आस्तीर्णानि प्रमेलयेत् ।
कर्तव्यो मण्डपः प्रोच्चैः कदलीखण्डमण्डितः ॥ १४ ॥
फलपुष्पदलैर्विष्वक् वितानेन विराजितः ।
चतुर्दिक्षु ध्वजारोपो बहुसम्पद्विराजितः ॥ १५ ॥
ऊर्ध्वं सप्तैव लोकाश्च कल्पनीयाः सविस्तरम् ।
तेषु विप्रा विरक्ताश्च स्थापनीयाः प्रबोध्य च ॥ १६ ॥
पूर्वं तेषां आसनानि कर्तव्यानि यथोत्तरम् ।
वक्तुश्चापि तदा दिव्यं आसनं परिकल्पयेत् ॥ १७ ॥
उदङ्‌मुखो भवेद्‌वक्ता श्रोता वै प्राङ्‌मुखस्तदा ।
प्राङ्‌मुखश्चेत् भवेद्‌वक्ता श्रोता च उदङ्‌मुखस्तदा ॥ १८ ॥
अथवा पूर्वदिग्ज्ञेया पूज्यपूजकमध्यतः ।
श्रोतॄणां आगमे प्रोक्ता देशकालादिकोविदैः ॥ १९ ॥

कथा का श्रवण किसी तीर्थमें, वनमें अथवा अपने घरपर भी अच्छा माना गया है। जहाँ लंबा- चौड़ा मैदान हो, वहीं कथास्थल रखना चाहिये ॥ १२ ॥ भूमिका शोधन, मार्जन और लेपन करके रंग-बिरंगी धातुओंसे चौक पूरे। घरकी सारी सामग्री उठाकर एक कोनेमें रख दे ॥ १३ ॥ पाँच दिन पहलेसे ही यत्नपूर्वक बहुत-से बिछानेके वस्त्र एकत्र कर ले तथा केलेके खंभोंसे सुशोभित एक ऊँचा मण्डप तैयार कराये ॥ १४ ॥ उसे सब ओर फल, पुष्प, पत्र और चँदोवेसे अलंकृत करे तथा चारों ओर झंडियाँ लगाकर तरह-तरहके सामानोंसे सजा दे ॥ १५ ॥ उस मण्डपमें कुछ ऊँचाईपर सात विशाल लोकोंकी कल्पना करे और उनमें विरक्त ब्राह्मणोंको बुला-बुलाकर बैठाये ॥ १६ ॥ आगेकी ओर उनके लिये वहाँ यथोचित आसन तैयार रखे। इनके पीछे वक्ताके लिये भी एक दिव्य सिंहासनका प्रबन्ध करे ॥ १७ ॥ यदि वक्ताका मुख उत्तरकी ओर रहे, तो श्रोता पूर्वाभिमुख होकर बैठे और यदि वक्ता पूर्वाभिमुख रहे तो श्रोताको उत्तरकी ओर मुख करके बैठना चाहिये ॥ १८ ॥ अथवा वक्ता और श्रोताको पूर्वमुख होकर बैठना चाहिये। देश-काल आदिको जाननेवाले महानुभावोंने श्रोताके लिये ऐसा ही नियम बताया है ॥ १९ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से


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