Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.०९)




|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.०९)

धुन्धुकारी को प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार

बुद्‌बुदा इव तोयेषु मशका इव जन्तुषु ।
जायन्ते मरणायैव कथाश्रवणवर्जिताः ॥ ६३ ॥
जडस्य शुष्कवंशस्य यत्र ग्रन्थिविभेदनम् ।
चित्रं किमु तदा चित्त ग्रन्थिभेदः कथाश्रवात् ॥ ६४ ॥
भिद्यते हृदयग्रन्थिः छिद्यन्ते सर्वसंशयाः ।
क्षीयन्ते चास्य कर्माणि सप्ताहश्रवणे कृते ॥ ६५ ॥
संसारकर्दमालेप प्रक्षालनपटीयसि ।
कथातीर्थे स्थिते चित्ते मुक्तिरेव बुधैः स्मृता ॥ ६६ ॥
एवं ब्रुवति वै तस्मिन् विमानं आगमत् तदा ।
वैकुण्ठवासिभिर्युक्तं प्रस्फुरत् दीप्तिमण्डलम् ॥ ६७ ॥

जो लोग भागवतकी कथासे वञ्चित हैंवे तो जलमें बुद्बुदे और जीवोंमें मच्छरोंके समान केवल मरनेके लिये ही पैदा होते हैं ॥ ६३ ॥ भलाजिसके प्रभावसे जड़ और सूखे हुए बाँसकी गाँठे फट सकती हैंउस भागवतकथाका श्रवण करनेसे चित्तकी गाँठोंका खुल जाना कौन बड़ी बात है ॥ ६४ ॥ सप्ताह-श्रवण करनेसे मनुष्यके हृदयकी गाँठ खुल जाती हैउसके समस्त संशय छिन्न-भिन्न हो जाते हैं और सारे कर्म क्षीण हो जाते हैं ॥ ६५ ॥ यह भागवतकथारूप तीर्थ संसारके कीचडक़ो धोनेमें बड़ा ही पटु है। विद्वानोंका कथन है कि जब यह हृदयमें स्थित हो जाता हैतब मनुष्यकी मुक्ति निश्चित ही समझनी चाहिये ॥ ६६ ॥ जिस समय धुन्धुकारी ये सब बातें कह रहा थाजिसके लिये वैकुण्ठवासी पार्षदोंके सहित एक विमान उतराउससे सब ओर मण्डलाकार प्रकाश फैल रहा था ॥ ६७ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से




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