|| ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय
(पोस्ट.०९)
धुन्धुकारी को
प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार
बुद्बुदा इव
तोयेषु मशका इव जन्तुषु ।
जायन्ते मरणायैव
कथाश्रवणवर्जिताः ॥ ६३ ॥
जडस्य
शुष्कवंशस्य यत्र ग्रन्थिविभेदनम् ।
चित्रं किमु तदा
चित्त ग्रन्थिभेदः कथाश्रवात् ॥ ६४ ॥
भिद्यते
हृदयग्रन्थिः छिद्यन्ते सर्वसंशयाः ।
क्षीयन्ते चास्य
कर्माणि सप्ताहश्रवणे कृते ॥ ६५ ॥
संसारकर्दमालेप
प्रक्षालनपटीयसि ।
कथातीर्थे
स्थिते चित्ते मुक्तिरेव बुधैः स्मृता ॥ ६६ ॥
एवं ब्रुवति वै
तस्मिन् विमानं आगमत् तदा ।
वैकुण्ठवासिभिर्युक्तं
प्रस्फुरत् दीप्तिमण्डलम् ॥ ६७ ॥
जो लोग भागवतकी
कथासे वञ्चित हैं, वे तो जलमें बुद्बुदे और जीवोंमें मच्छरोंके
समान केवल मरनेके लिये ही पैदा होते हैं ॥ ६३ ॥ भला, जिसके
प्रभावसे जड़ और सूखे हुए बाँसकी गाँठे फट सकती हैं, उस
भागवतकथाका श्रवण करनेसे चित्तकी गाँठोंका खुल जाना कौन बड़ी बात है ॥ ६४ ॥
सप्ताह-श्रवण करनेसे मनुष्यके हृदयकी गाँठ खुल जाती है, उसके समस्त संशय छिन्न-भिन्न हो जाते हैं और सारे कर्म क्षीण हो जाते हैं
॥ ६५ ॥ यह भागवतकथारूप तीर्थ संसारके कीचडक़ो धोनेमें बड़ा ही पटु है। विद्वानोंका
कथन है कि जब यह हृदयमें स्थित हो जाता है, तब मनुष्यकी
मुक्ति निश्चित ही समझनी चाहिये ॥ ६६ ॥ जिस समय धुन्धुकारी ये सब बातें कह रहा था, जिसके लिये वैकुण्ठवासी पार्षदोंके सहित एक विमान उतरा; उससे सब ओर मण्डलाकार प्रकाश फैल रहा था ॥ ६७ ॥
हरिः ॐ तत्सत्
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गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित
श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से
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