|| ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय
(पोस्ट.०५)
धुन्धुकारी को
प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार
प्रेत उवाच -
गयाश्राद्धशतेनापि
मुक्तिर्मे न भविष्यति ।
उपायं अपरं
कंचित् त्वं विचारय साम्प्रतम् ॥ ३३ ॥
इति तद्वाक्यमाकर्ण्य
गोकर्णो विस्मयं गतः ।
शतश्राद्धैर्न
मुक्तिश्चेत् असाध्यं मोचनं तव ॥ ३४ ॥
इदानीं तु निजं
स्थानं आतिष्ठ प्रेत निर्भयः ।
त्वन्मुक्तिसाधकं
किंचित् आचरिष्ये विचार्य च ॥ ३५ ॥
धुन्धुकारी
निजस्थानं तेनादिष्टस्ततो गतः ।
गोकर्णश्चिन्तयामास
तां रात्रिं न तदध्यगात् ॥ ३६ ॥
प्रातस्तं आगतं
दृष्ट्वा लोकाः प्रीत्याः समागताः ।
तत्सर्वं कथितं
तेन यत् जातं च यथा निशि ॥ ३७ ॥
विद्वांसो
योगनिष्ठाश्च ज्ञानिनो ब्रह्मवादिनः ।
तन्मुक्तिं नैव
तेऽपश्यन् पश्यन्तः शास्त्रसंचयान् ॥ ३८ ॥
ततः सर्वैः
सूर्यवाक्यं तन्मुक्तौ स्थापितं परम् ।
गोकर्णः
स्तम्भनं चक्रे सूर्यवेगस्य वै तदा ॥ ३९ ॥
तुभ्यं नमो जगत्
साक्षिन् ब्रूहि मे मुक्तिहेतुकम् ।
तत् श्रुत्वा
दूरतः सूर्यः स्फुटमित्यभ्यभाषत ॥ ४० ॥
श्रीमद्भागवतान्
मुक्तिः सप्ताहं वाचनं कुरु ।
इति सूर्यवचः
सर्वैः धर्मरूपं तु विश्रुतम् ॥ ४१ ॥
सर्वेऽब्रुवन्
प्रयत्नेन कर्तव्यं सुकरं त्विदम् ।
गोकर्णो निश्चयं
कृत्वा वाचनार्थं प्रवर्तितः ॥ ४२ ॥
प्रेत
(धुंधुकारी)ने कहा—मेरी मुक्ति सैकड़ों गया-श्राद्ध करनेसे भी नहीं हो
सकती। अब तो तुम इसका कोई और उपाय सोचो ॥ ३३ ॥ प्रेतकी यह बात सुनकर गोकर्णको बड़ा
आश्चर्य हुआ। वे कहने लगे—‘यदि सैकड़ों गया- श्राद्धोंसे भी
तुम्हारी मुक्ति नहीं हो सकती, तब तो तुम्हारी मुक्ति
असम्भव ही है ॥ ३४ ॥ अच्छा, अभी तो तुम निर्भय होकर
अपने स्थान पर रहो; मैं विचार करके तुम्हारी मुक्तिके
लिये कोई दूसरा उपाय करूँगा’ ॥ ३५ ॥ गोकर्णकी आज्ञा
पाकर धुन्धुकारी वहाँसे अपने स्थानपर चला आया। इधर गोकर्णने रातभर विचार किया, तब भी उन्हें कोई उपाय नहीं सूझा ॥ ३६ ॥ प्रात:काल उनको आया देख लोग
प्रेमसे उनसे मिलने आये। तब गोकर्णने रातमें जो कुछ जिस प्रकार हुआ था, वह सब उन्हें सुना दिया ॥ ३७ ॥ उनमें जो लोग विद्वान्, योगनिष्ठ, ज्ञानी और वेदज्ञ थे, उन्होंने भी अनेकों शास्त्रोंको उलट-पलटकर देखा; तो भी उसकी मुक्तिका कोई उपाय न मिला ॥ ३८ ॥ तब सबने यही निश्चय किया कि
इस विषयमें सूर्यनारायण जो आज्ञा करें, वही करना
चाहिये। अत: गोकर्णने अपने तपो- बलसे सूर्यकी गतिको रोक दिया ॥ ३९ ॥ उन्होंने
स्तुति की—‘भगवन् ! आप सारे संसारके साक्षी हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप मुझे कृपा करके धुन्धुकारीकी मुक्तिका साधन
बताइये।’ गोकर्णकी यह प्रार्थना सुनकर सूर्यदेव ने दूर
से ही स्पष्ट शब्दोंमें कहा—‘श्रीमद्भागवतसे मुक्ति हो सकती
है, इसलिये तुम उसका सप्ताह-पारायण करो।’ सूर्यका यह धर्ममय वचन वहाँ सभीने सुना ॥ ४०-४१ ॥ तब सबने यही कहा कि ‘प्रयत्नपूर्वक यही करो, है भी यह साधन बहुत
सरल।’ अत: गोकर्णजी भी तदनुसार निश्चय करके कथा
सुनानेके लिये तैयार हो गये ॥ ४२ ॥
हरिः ॐ तत्सत्
शेष आगामी पोस्ट
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गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535
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