|| ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय
(पोस्ट.१२)
धुन्धुकारी को
प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार
श्रवणो मासि
गोकर्णः कथां ऊचे तथा पुनः ।
सप्तरात्रवतीं
भूयः श्रवणं तैः कृतं पुनः ॥ ७८ ॥
कथासमाप्तौ
यज्जातं श्रूयतां तच्च नारद ॥ ७९ ॥
विमानैः सह
भक्तैश्च हरिराविर्बभूव ह ।
जयशब्दा
नमःशब्दाः तत्रासन् बहवस्तदा ॥ ८० ॥
पाञ्चजन्य
ध्वनिं चक्रे हर्षात् तत्र स्वयं हरिः ।
गोकर्णं तु
समालिंग्य अकरोत् स्वसदृषं हरिः ॥ ८१ ॥
श्रोतॄन्
अन्यान् घनश्यामान् पीतकौशेयवाससः ।
कीरीटिनः
कुण्डलिनः तथा चक्रे हरिः क्षणात् ॥ ८२ ॥
तद्ग्रामे ये
स्थिता जीवा आश्वचाण्डालजातयः ।
विमाने
स्थापितास्तेऽपि गोकर्णकृपया तदा ॥ ८३ ॥
प्रेषिता
हरिलोके ते यत्र गच्छन्ति योगिनः ।
गोकर्णेन स
गोपालो गोलोकं गोपवल्लभम् ।
कथाश्रवणतः
प्रीतो निर्ययौ भक्तवत्सलः ॥ ८४ ॥
अयोध्यावासिनं
पूर्वं यथा रामेण संगताः ।
तथा कृष्णेन ते
नीता गोलोकं योगिदुर्लभम् ॥ ८५ ॥
यत्र सूर्यस्य
सोमस्य सिद्धानां न गतिः कदा ।
तं लोकं हि
गतास्ते तु श्रीमद्भागवतश्रवात् ॥ ८६ ॥
श्रावण मासमें
गोकर्णजीने फिर उसी प्रकार सप्ताहक्रमसे कथा कही और उन श्रोताओंने उसे फिर सुना ॥
७८ ॥ नारदजी ! इस कथाकी समाप्तिपर जो कुछ हुआ, वह
सुनिये ॥ ७९ ॥ वहाँ भक्तोंसे भरे हुए विमानोंके साथ भगवान् प्रकट हुए। सब ओरसे
खूब जय-जयकार और नमस्कारकी ध्वनियाँ होने लगीं ॥ ८० ॥ भगवान् स्वयं हर्षित होकर
अपने पाञ्चजन्य शङ्खकी ध्वनि करने लगे और उन्होंने गोकर्णको हृदयसे लगाकर अपने ही
समान बना लिया ॥ ८१ ॥ उन्होंने क्षणभरमें ही अन्य सब श्रोताओंको भी मेघके समान
श्यामवर्ण, रेशमी पीताम्बरधारी तथा किरीट और
कुण्डलादिसे विभूषित कर दिया ॥ ८२ ॥ उस गाँवमें कुत्ते और चाण्डालपर्यन्त जितने भी
जीव थे, वे सभी गोकर्णजीकी कृपासे विमानोंपर चढ़ा लिये
गये ॥ ८३ ॥ तथा जहाँ योगिजन जाते हैं, उस भगवद्धाममें
वे भेज दिये गये। इस प्रकार भक्तवत्सल भगवान् श्रीकृष्ण कथाश्रवणसे प्रसन्न होकर
गोकर्णजीको साथ ले अपने ग्वालबालोंके प्रिय गोलोकधाममें चले गये ॥ ८४ ॥
पूर्वकालमें जैसे अयोध्यावासी भगवान् श्रीरामके साथ साकेतधाम सिधारे थे, उसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण उन सबको योगिदुर्लभ गोलोकधामको ले गये ॥ ८५
॥ जिस लोकमें सूर्य, चन्द्रमा और सिद्धोंकी भी कभी गति
नहीं हो सकती, उसमें वे श्रीमद्भागवत श्रवण करनेसे चले
गये ॥ ८६ ॥
हरिः ॐ तत्सत्
शेष आगामी पोस्ट
में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
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