Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.१२)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.१२)

धुन्धुकारी को प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार

श्रवणो मासि गोकर्णः कथां ऊचे तथा पुनः ।
सप्तरात्रवतीं भूयः श्रवणं तैः कृतं पुनः ॥ ७८ ॥
कथासमाप्तौ यज्जातं श्रूयतां तच्च नारद ॥ ७९ ॥
विमानैः सह भक्तैश्च हरिराविर्बभूव ह ।
जयशब्दा नमःशब्दाः तत्रासन् बहवस्तदा ॥ ८० ॥
पाञ्चजन्य ध्वनिं चक्रे हर्षात् तत्र स्वयं हरिः ।
गोकर्णं तु समालिंग्य अकरोत् स्वसदृषं हरिः ॥ ८१ ॥
श्रोतॄन् अन्यान् घनश्यामान् पीतकौशेयवाससः ।
कीरीटिनः कुण्डलिनः तथा चक्रे हरिः क्षणात् ॥ ८२ ॥
तद्‌ग्रामे ये स्थिता जीवा आश्वचाण्डालजातयः ।
विमाने स्थापितास्तेऽपि गोकर्णकृपया तदा ॥ ८३ ॥
प्रेषिता हरिलोके ते यत्र गच्छन्ति योगिनः ।
गोकर्णेन स गोपालो गोलोकं गोपवल्लभम् ।
कथाश्रवणतः प्रीतो निर्ययौ भक्तवत्सलः ॥ ८४ ॥
अयोध्यावासिनं पूर्वं यथा रामेण संगताः ।
तथा कृष्णेन ते नीता गोलोकं योगिदुर्लभम् ॥ ८५ ॥
यत्र सूर्यस्य सोमस्य सिद्धानां न गतिः कदा ।
तं लोकं हि गतास्ते तु श्रीमद्‌भागवतश्रवात् ॥ ८६ ॥

श्रावण मासमें गोकर्णजीने फिर उसी प्रकार सप्ताहक्रमसे कथा कही और उन श्रोताओंने उसे फिर सुना ॥ ७८ ॥ नारदजी ! इस कथाकी समाप्तिपर जो कुछ हुआवह सुनिये ॥ ७९ ॥ वहाँ भक्तोंसे भरे हुए विमानोंके साथ भगवान्‌ प्रकट हुए। सब ओरसे खूब जय-जयकार और नमस्कारकी ध्वनियाँ होने लगीं ॥ ८० ॥ भगवान्‌ स्वयं हर्षित होकर अपने पाञ्चजन्य शङ्खकी ध्वनि करने लगे और उन्होंने गोकर्णको हृदयसे लगाकर अपने ही समान बना लिया ॥ ८१ ॥ उन्होंने क्षणभरमें ही अन्य सब श्रोताओंको भी मेघके समान श्यामवर्णरेशमी पीताम्बरधारी तथा किरीट और कुण्डलादिसे विभूषित कर दिया ॥ ८२ ॥ उस गाँवमें कुत्ते और चाण्डालपर्यन्त जितने भी जीव थेवे सभी गोकर्णजीकी कृपासे विमानोंपर चढ़ा लिये गये ॥ ८३ ॥ तथा जहाँ योगिजन जाते हैंउस भगवद्धाममें वे भेज दिये गये। इस प्रकार भक्तवत्सल भगवान्‌ श्रीकृष्ण कथाश्रवणसे प्रसन्न होकर गोकर्णजीको साथ ले अपने ग्वालबालोंके प्रिय गोलोकधाममें चले गये ॥ ८४ ॥ पूर्वकालमें जैसे अयोध्यावासी भगवान्‌ श्रीरामके साथ साकेतधाम सिधारे थेउसी प्रकार भगवान्‌ श्रीकृष्ण उन सबको योगिदुर्लभ गोलोकधामको ले गये ॥ ८५ ॥ जिस लोकमें सूर्यचन्द्रमा और सिद्धोंकी भी कभी गति नहीं हो सकतीउसमें वे श्रीमद्भागवत श्रवण करनेसे चले गये ॥ ८६ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से




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