|| ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय
(पोस्ट.१३)
धुन्धुकारी को
प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार
ब्रूमोऽत्र ते
किं फलवृन्दमुज्ज्वलं
सप्ताहयज्ञेन कथासु संचितम् ।
कर्णेन
गोकर्णकथाक्षरो यैः
पीतश्च ते गर्भगता न भूयः ॥ ८७ ॥
वाताम्बुपर्णाशन
देहशोषणैः
तपोभिः उग्रैः चिरकालसंचितैः ।
योगैश्च
संयान्ति न तां गतिं वै
सप्ताहगाथाश्रवणेन यान्ति याम् ॥ ८८ ॥
इतिहासं इमं
पुण्यं शाण्डिल्योऽपि मुनीश्वरः ।
पठते
चित्रकूटस्थो ब्रह्मानन्दपरिप्लुतः ॥ ८९ ॥
आख्यानमेतत्
परमं पवित्रं
श्रुतं सकृद्वै विदहेदघौघम् ।
श्राद्धे
प्रयुक्तं पितृतृप्तिमावहेत्
नित्यं सुपाठाद अपुनर्भवं च ॥ ९० ॥
नारदजी !
सप्ताहयज्ञके द्वारा कथा-श्रवण करनेसे जैसा उज्ज्वल फल संचित होता है, उसके विषयमें हम आपसे क्या कहें ? अजी !
जिन्होंने अपने कर्णपुट से गोकर्णजी की कथा के एक अक्षरका भी पान किया था, वे फिर माता के गर्भ में नहीं आये ॥ ८७ ॥ जिस गतिको लोग वायु, जल या पत्ते खाकर शरीर सुखानेसे, बहुत कालतक
घोर तपस्या करनेसे और योगाभ्याससे भी नहीं पा सकते, उसे
वे सप्ताहश्रवणसे सहजमें ही प्राप्त कर लेते हैं ॥ ८८ ॥ इस परम पवित्र इतिहासका
पाठ चित्रकूटपर विराजमान मुनीश्वर शाण्डिल्य भी ब्रह्मानन्दमें मग्र होकर करते
रहते हैं ॥ ८९ ॥ यह कथा बड़ी ही पवित्र है। एक बारके श्रवणसे ही समस्त पाप-राशिको
भस्म कर देती है। यदि इसका श्राद्धके समय पाठ किया जाय, तो इससे पितृगणको बड़ी तृप्ति होती है और नित्य पाठ करनेसे मोक्षकी
प्राप्ति होती है ॥ ९० ॥
||हरिः ॐ
तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
इति
श्रीपद्मपुराणे उत्तरखण्डे श्रीमद्भागवतमाहात्म्ये
गोकर्णमोक्षवर्णनं
नाम पंचमोऽध्यायः ॥ ५ ॥
शेष आगामी पोस्ट
में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
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