Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.१३)




|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.१३)

धुन्धुकारी को प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार

ब्रूमोऽत्र ते किं फलवृन्दमुज्ज्वलं
     सप्ताहयज्ञेन कथासु संचितम् ।
कर्णेन गोकर्णकथाक्षरो यैः
     पीतश्च ते गर्भगता न भूयः ॥ ८७ ॥
वाताम्बुपर्णाशन देहशोषणैः
     तपोभिः उग्रैः चिरकालसंचितैः ।
योगैश्च संयान्ति न तां गतिं वै
     सप्ताहगाथाश्रवणेन यान्ति याम् ॥ ८८ ॥
इतिहासं इमं पुण्यं शाण्डिल्योऽपि मुनीश्वरः ।
पठते चित्रकूटस्थो ब्रह्मानन्दपरिप्लुतः ॥ ८९ ॥
आख्यानमेतत् परमं पवित्रं
     श्रुतं सकृद्वै विदहेदघौघम् ।
श्राद्धे प्रयुक्तं पितृतृप्तिमावहेत्
     नित्यं सुपाठाद अपुनर्भवं च ॥ ९० ॥

नारदजी ! सप्ताहयज्ञके द्वारा कथा-श्रवण करनेसे जैसा उज्ज्वल फल संचित होता हैउसके विषयमें हम आपसे क्या कहें ? अजी ! जिन्होंने अपने कर्णपुट से गोकर्णजी की कथा के एक अक्षरका भी पान किया थावे फिर माता के गर्भ में नहीं आये ॥ ८७ ॥ जिस गतिको लोग वायुजल या पत्ते खाकर शरीर सुखानेसेबहुत कालतक घोर तपस्या करनेसे और योगाभ्याससे भी नहीं पा सकतेउसे वे सप्ताहश्रवणसे सहजमें ही प्राप्त कर लेते हैं ॥ ८८ ॥ इस परम पवित्र इतिहासका पाठ चित्रकूटपर विराजमान मुनीश्वर शाण्डिल्य भी ब्रह्मानन्दमें मग्र होकर करते रहते हैं ॥ ८९ ॥ यह कथा बड़ी ही पवित्र है। एक बारके श्रवणसे ही समस्त पाप-राशिको भस्म कर देती है। यदि इसका श्राद्धके समय पाठ किया जायतो इससे पितृगणको बड़ी तृप्ति होती है और नित्य पाठ करनेसे मोक्षकी प्राप्ति होती है ॥ ९० ॥

||हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

इति श्रीपद्मपुराणे उत्तरखण्डे श्रीमद्‌भागवतमाहात्म्ये
गोकर्णमोक्षवर्णनं नाम पंचमोऽध्यायः ॥ ५ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से




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