Tuesday, December 12, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.११)




|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.११)

धुन्धुकारी को प्रेतयोनि की प्राप्ति और उससे उद्धार

अदृढं च हतं ज्ञानं प्रमादेन हतं श्रुतम् ।
संदिग्धो हि हतो मंत्रो व्यग्रचित्तो हतो जपः ॥ ७३ ॥
अवैष्णवो हतो देशो हतं श्राद्धं अपात्रकम् ।
हतं अश्रोत्रिये दानं अनाचारं हतं कुलम् ॥ ७४ ॥
विश्वासो गुरुवाक्येषु स्वस्मिन् दीनत्वभावना ।
मनोदोषजयश्चैव कथायां निश्चला मतिः ॥ ७५ ॥
एवं आदि कृतं चेत् स्यात् तदा वै श्रवणे फलम् ।
पुनः श्रवान्ते सर्वेषां वैकुण्ठे वसतिर्ध्रुवम् ॥ ७६ ॥
गोकर्ण तव गोविन्दो गोलोकं दास्यति स्वयम् ।
एवमुक्त्वा ययुः सर्वे वैकुण्ठ हरिकीर्तनाः ॥ ७७ ॥

जो ज्ञान दृढ़ नहीं होतावह व्यर्थ हो जाता है। इसी प्रकार ध्यान न देनेसे श्रवणकासंदेहसे मन्त्रका और चित्तके इधर-उधर भटकते रहनेसे जपका भी कोई फल नहीं होता ॥ ७३ ॥ वैष्णवहीन देशअपात्रको कराया हुआ श्राद्धका भोजनअश्रोत्रियको दिया हुआ दान एवं आचारहीन कुलइन सबका नाश हो जाता है ॥ ७४ ॥ गुरुवचनोंमें विश्वासदीनताका भावमनके दोषोंपर विजय और कथामें चित्तकी एकाग्रता इत्यादि नियमोंका यदि पालन किया जाय तो श्रवण का यथार्थ फल मिलता है । यदि ये श्रोता फिर से श्रीमद्भागवत की कथा सुनें तो निश्चय ही सब को वैकुण्ठ की प्राप्ति होगी ॥ ७५-७६ ॥ और गोकर्णजी ! आपको तो भगवान्‌ स्वयं आकर गोलोकधाम में ले जायँगे । यों कहकर वे सब पार्षद हरिकीर्तन करते वैकुण्ठलोक को चले गये ॥७७॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से




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