Thursday, December 7, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य पहला अध्याय (पोस्ट.०४)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पहला अध्याय (पोस्ट.०४)


देवर्षि नारदकी भक्तिसे भेंट

परीक्षिते कथां वक्तुं सभायां संस्थिते शुके ।
सुधाकुंभं गृहीत्वैव देवास्तत्र समागमन् ॥ १३ ॥
शुकं नत्वावदन् सर्वे स्वकार्यकुशलाः सुराः ।
कथासुधां प्रयच्छस्व गृहीत्वैव सुधां इमाम् ॥ १४ ॥
एवं विनिमये जाते सुधा राज्ञा प्रपीयताम् ।
प्रपास्यामो वयं सर्वे श्रीमद्‌भागवतामृतम् ॥ १५ ॥
क्व सुधा क्व कथा लोके क्व काचः क्व मणिर्महान् ।
ब्रह्मरातो विचार्यैवं तदा देवाञ्जहास ह ॥ १६ ॥
अभक्तान् तांश्च विज्ञाय न ददौ स कथामृतम् ।
श्रीमद्‌भागवती वार्ता सुराणां अपि दुर्लभा ॥ १७ ॥

जब शुकदेवजी राजा परीक्षित्‌ को यह कथा सुनाने के लिये सभा में विराजमान हुए, तब देवतालोग उनके पास अमृतका कलश लेकर आये ॥ १३ ॥ देवता अपना काम बनानेमें बड़े कुशल होते हैं; अत: यहाँ भी सबने शुकदेवमुनिको नमस्कार करके कहा, ‘आप यह अमृत लेकर बदलेमें हमें कथामृत- का दान दीजिये ॥ १४ ॥ इस प्रकार परस्पर विनिमय (अदला-बदली) हो जानेपर राजा परीक्षित्‌ अमृतका पान करें और हम सब श्रीमद्भागवतरूप अमृतका पान करगें॥ १५ ॥ इस संसारमें कहाँ काँच और कहाँ महामूल्य मणि तथा कहाँ सुधा और कहाँ कथा ? श्रीशुकदेवजीने (यह सोचकर) उस समय देवताओंकी हँसी उड़ा दी ॥ १६ ॥ उन्हें भक्तिशून्य (कथाका अनधिकारी) जानकर कथामृतका दान नहीं किया। इस प्रकार यह श्रीमद्भागवत की कथा देवताओं को भी दुर्लभ है ॥ १७ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से 


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