||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पहला
अध्याय (पोस्ट.०४)
देवर्षि
नारदकी भक्तिसे भेंट
परीक्षिते
कथां वक्तुं सभायां संस्थिते शुके ।
सुधाकुंभं
गृहीत्वैव देवास्तत्र समागमन् ॥ १३ ॥
शुकं
नत्वावदन् सर्वे स्वकार्यकुशलाः सुराः ।
कथासुधां
प्रयच्छस्व गृहीत्वैव सुधां इमाम् ॥ १४ ॥
एवं
विनिमये जाते सुधा राज्ञा प्रपीयताम् ।
प्रपास्यामो
वयं सर्वे श्रीमद्भागवतामृतम् ॥ १५ ॥
क्व
सुधा क्व कथा लोके क्व काचः क्व मणिर्महान् ।
ब्रह्मरातो
विचार्यैवं तदा देवाञ्जहास ह ॥ १६ ॥
अभक्तान्
तांश्च विज्ञाय न ददौ स कथामृतम् ।
श्रीमद्भागवती
वार्ता सुराणां अपि दुर्लभा ॥ १७ ॥
जब
शुकदेवजी राजा परीक्षित् को यह कथा सुनाने के लिये सभा में विराजमान हुए, तब देवतालोग उनके पास अमृतका कलश लेकर आये ॥ १३ ॥ देवता अपना काम बनानेमें
बड़े कुशल होते हैं; अत: यहाँ भी सबने शुकदेवमुनिको नमस्कार
करके कहा, ‘आप यह अमृत लेकर बदलेमें हमें कथामृत- का दान
दीजिये ॥ १४ ॥ इस प्रकार परस्पर विनिमय (अदला-बदली) हो जानेपर राजा परीक्षित्
अमृतका पान करें और हम सब श्रीमद्भागवतरूप अमृतका पान करगें’ ॥ १५ ॥ इस संसारमें कहाँ काँच और कहाँ महामूल्य मणि तथा कहाँ सुधा और कहाँ
कथा ? श्रीशुकदेवजीने (यह सोचकर) उस समय देवताओंकी हँसी उड़ा
दी ॥ १६ ॥ उन्हें भक्तिशून्य (कथाका अनधिकारी) जानकर कथामृतका दान नहीं किया। इस
प्रकार यह श्रीमद्भागवत की कथा देवताओं को भी दुर्लभ है ॥ १७ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
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