||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पहला
अध्याय (पोस्ट .०३)
देवर्षि
नारदकी भक्तिसे भेंट
सूत
उवाच –
प्रीतिः
शौनक चित्ते ते ह्यतो वच्मि विचार्य च ।
सर्वसिद्धान्त
निष्पन्नं संसरभयनाशनम् ॥ ९ ॥
भक्त्योघवर्धनं
यच्च कृष्णसंतोषहेतुकम् ।
तदहं
तेऽभिधास्यामि सावधानतया श्रृणु ॥ १० ॥
कालव्यालमुखाग्रास
त्रासनिर्णाशहेतवे ।
श्रीमद्भागवतं
शास्त्रं कलौ कीरेण भाषितम् ॥ ११ ॥
एतस्माद्
अपरं किंचिद् मनःशुद्ध्यै न विद्यते ।
जन्मान्तरे
भवेत् पुण्यं तदा भागवतं लभेत् ॥ १२ ॥
सूतजीने
कहा—
शौनकजी
! तुम्हारे हृदयमें भगवान्का प्रेम है; इसलिये मैं विचारकर
तुम्हें सम्पूर्ण सिद्धान्तोंका निष्कर्ष सुनाता हूँ, जो
जन्म-मृत्युके भयका नाश कर देता है ॥ ९ ॥ जो भक्तिके प्रवाहको बढ़ाता है और भगवान्
श्रीकृष्णकी प्रसन्नताका प्रधान कारण है, मैं तुम्हें वह
साधन बतलाता हूँ; उसे सावधान होकर सुनो ॥ १० ॥
श्रीशुकदेवजीने कलियुगमें जीवोंके काल- रूपी सर्पके मुखका ग्रास होनेके त्रासका
आत्यन्तिक नाश करनेके लिये श्रीमद्भागवतशास्त्रका प्रवचन किया है ॥ ११ ॥ मनकी
शुद्धिके लिये इससे बढक़र कोई साधन नहीं है। जब मनुष्यके जन्म-जन्मान्तरका पुण्य
उदय होता है, तभी उसे इस भागवतशास्त्रकी प्राप्ति होती है ॥
१२ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तक कोड
1535 से
No comments:
Post a Comment