||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पहला
अध्याय (पोस्ट.०५)
देवर्षि
नारदकी भक्तिसे भेंट
राज्ञो
मोक्षं तथा वीक्ष्य पुरा धातापि विस्मितः ।
सत्यलोक
तुलां बद्ध्वा तोलयत् साधनान्यजः ॥ १८ ॥
लघून्यन्यानि
जातानि गौरवेण इदं महत् ।
तदा
ऋषिगणाः सर्वे विस्मयं परमं ययुः ॥ १९ ॥
मेनिरे
भगवद्रूपं शास्त्रं भागवतं कलौ ।
पठनात्
श्रवणात् सद्यो वैकुण्ठफलदायकम् ॥ २० ॥
सप्ताहेन
श्रुतं चैतत् सर्वथा मुक्तिदायकम् ।
सनकाद्यैः
पुरा प्रोक्तं नारदाय दयापरैः ॥ २१ ॥
यद्यपि
ब्रह्मसंबंधात् श्रुतमेतत् सुरर्षिणा ।
सप्ताहश्रवणविधिः
कुमारैस्तस्य भाषितः ॥ २२ ॥
पूर्वकालमें
श्रीमद्भागवतके श्रवणसे ही राजा परीक्षित्की मुक्ति देखकर ब्रह्माजीको भी बड़ा
आश्चर्य हुआ था। उन्होंने सत्यलोकमें तराजू बाँधकर सब साधनोंको तौला ॥ १८ ॥ अन्य
सभी साधन तौलमें हलके पड़ गये, अपने महत्त्वके कारण भागवत ही
सबसे भारी रहा। यह देखकर सभी ऋषियोंको बड़ा विस्मय हुआ ॥ १९ ॥ उन्होंने कलियुगमें
इस भगवद्रूप भागवतशास्त्रको ही पढऩे-सुननेसे तत्काल मोक्ष देनेवाला निश्चय किया ॥
२० ॥ सप्ताह-विधिसे श्रवण करनेपर यह निश्चय भक्ति प्रदान करता है। पूर्वकालमें इसे
दयापरायण सनकादिने देवर्षि नारदको सुनाया था ॥ २१ ॥ यद्यपि देवर्षिने पहले
ब्रह्माजीके मुखसे इसे श्रवण कर लिया था, तथापि सप्ताहश्रवण-
की विधि तो उन्हें सनकादि ने ही बतायी थी ॥ २२ ॥
हरिः
ॐ तत्सत्
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड
1535 से
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