Thursday, December 7, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य पहला अध्याय (पोस्ट.०५)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
पहला अध्याय (पोस्ट.०५)

देवर्षि नारदकी भक्तिसे भेंट

राज्ञो मोक्षं तथा वीक्ष्य पुरा धातापि विस्मितः ।
सत्यलोक तुलां बद्ध्वा तोलयत् साधनान्यजः ॥ १८ ॥
लघून्यन्यानि जातानि गौरवेण इदं महत् ।
तदा ऋषिगणाः सर्वे विस्मयं परमं ययुः ॥ १९ ॥
मेनिरे भगवद्‌रूपं शास्त्रं भागवतं कलौ ।
पठनात् श्रवणात् सद्यो वैकुण्ठफलदायकम् ॥ २० ॥
सप्ताहेन श्रुतं चैतत् सर्वथा मुक्तिदायकम् ।
सनकाद्यैः पुरा प्रोक्तं नारदाय दयापरैः ॥ २१ ॥
यद्यपि ब्रह्मसंबंधात् श्रुतमेतत् सुरर्षिणा ।
सप्ताहश्रवणविधिः कुमारैस्तस्य भाषितः ॥ २२ ॥

पूर्वकालमें श्रीमद्भागवतके श्रवणसे ही राजा परीक्षित्‌की मुक्ति देखकर ब्रह्माजीको भी बड़ा आश्चर्य हुआ था। उन्होंने सत्यलोकमें तराजू बाँधकर सब साधनोंको तौला ॥ १८ ॥ अन्य सभी साधन तौलमें हलके पड़ गये, अपने महत्त्वके कारण भागवत ही सबसे भारी रहा। यह देखकर सभी ऋषियोंको बड़ा विस्मय हुआ ॥ १९ ॥ उन्होंने कलियुगमें इस भगवद्रूप भागवतशास्त्रको ही पढऩे-सुननेसे तत्काल मोक्ष देनेवाला निश्चय किया ॥ २० ॥ सप्ताह-विधिसे श्रवण करनेपर यह निश्चय भक्ति प्रदान करता है। पूर्वकालमें इसे दयापरायण सनकादिने देवर्षि नारदको सुनाया था ॥ २१ ॥ यद्यपि देवर्षिने पहले ब्रह्माजीके मुखसे इसे श्रवण कर लिया था, तथापि सप्ताहश्रवण- की विधि तो उन्हें सनकादि ने ही बतायी थी ॥ २२ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से 


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