Monday, December 11, 2017

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य तीसरा अध्याय (पोस्ट.०७)



|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||

श्रीमद्भागवतमाहात्म्य
तीसरा अध्याय (पोस्ट.०७)

भक्तिके कष्टकी निवृत्ति

मनोवृत्तिजयश्चैव नियमाचरणं तथा ।
दीक्षां कर्तुं अशक्यत्वात् सप्ताहश्रवणं मतम् ॥ ४७ ॥
श्रद्धातः श्रवणे नित्यं माघे तावद्धि यत्फलम् ।
तत्फलं शुकदेवेन सप्ताहश्रवणे कृतम् ॥ ४८ ॥
मनसश्च अजयात् रोगात् पुंसां चैवायुषः क्षयात् ।
कलेर्दोषबहुत्वाच्च सप्ताहश्रवणं मतम् ॥ ४९ ॥
यत्फलं नास्ति तपसा न योगेन समाधिना ।
अनायासेन तत्सर्वं सप्ताहश्रवणे लभेत् ॥ ५० ॥
यज्ञात् गर्जति सप्ताहः सप्ताहो गर्जति व्रतात् ।
तपसो गर्जति प्रोच्चैः तीर्थान्नित्यं हि गर्जति ॥ ५१ ॥
योगात् गर्जति सप्ताहो ध्यानात् ज्ञानाच्च गर्जति ।
किं ब्रूमो गर्जनं तस्य रे रे गर्जति गर्जति ॥ ५२ ॥

शौनक उवाच –

साश्चर्यमेतत्कथितं कथानकं
     ज्ञानादिधर्मान् विगणय्य साम्प्रतम् ।
निःश्रेयसे भागवतं पुराणं
     जातं कुतो योगविदादिसूचकम् ॥ ५३ ॥

कलियुगमें बहुत दिनों तक चित्त की वृत्तियों को वशमें रखना, नियमों में बँधे रहना और किसी पुण्यकार्य के लिये दीक्षित रहना कठिन है; इसलिये सप्ताह- श्रवणकी विधि है ॥ ४७ ॥ श्रद्धापूर्वक कभी भी श्रवण करने से अथवा माघमास में श्रवण करने से जो फल होता है, वही फल श्रीशुकदेवजी ने सप्ताहश्रवण में निर्धारित किया है ॥ ४८ ॥ मनके असंयम, रोगोंकी बहुलता और आयुकी अल्पताके कारण तथा कलियुगमें अनेकों दोषोंकी सम्भावनासे ही सप्ताहश्रवणका विधान किया गया है ॥ ४९ ॥ जो फल तप, योग और समाधिसे भी प्राप्त नहीं हो सकता, वह सर्वाङ्गरूप में सप्ताह श्रवणसे सहज में ही मिल जाता है ॥ ५० ॥ सप्ताहश्रवण यज्ञ से बढक़र है, व्रतसे बढक़र है, तपसे कहीं बढक़र है। तीर्थसेवनसे तो सदा ही बड़ा है, योगसे बढक़र हैयहाँतक कि ध्यान और ज्ञानसे भी बढक़र है, अजी ! इसकी विशेषताका कहाँतक वर्णन करें, यह तो सभीसे बढ़-चढक़र है ॥ ५१-५२ ॥
शौनकजीने पूछासूतजी ! यह तो आपने बड़े आश्चर्यकी बात कही। अवश्य ही यह भागवत-पुराण योगवेत्ता ब्रह्माजीके भी आदिकारण श्रीनारायणका निरूपण करता है; परन्तु यह मोक्षकी प्राप्तिमें ज्ञानादि सभी साधनोंका तिरस्कार करके इस युगमें उनसे भी कैसे बढ़ गया ? ॥ ५३ ॥

हरिः ॐ तत्सत्

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण(विशिष्टसंस्करण)पुस्तककोड1535 से 


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